मोदी के मन की बात-बारहवां एपिसोड

pm modi in mann ki baat

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मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार! ‘मन की बात’ का ये बारहवां एपिसोड है और इस हिसाब से देखें तो एक साल बीत गया। पिछले वर्ष, 3 अक्टूबर को पहली बार मुझे ‘मन की बात’ करने का सौभाग्य मिला था। ‘मन की बात’ – एक वर्ष, अनेक बातें। मैं नहीं जानता हूँ कि आपने क्या पाया, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ, मैंने बहुत कुछ पाया।

लोकतंत्र में जन-शक्ति का अपार महत्व है। मेरे जीवन में एक मूलभूत सोच रही है और उसके कारण जन-शक्ति पर मेरा अपार विश्वास रहा है। लेकिन ‘मन की बात’ ने मुझे जो सिखाया, जो समझाया, जो जाना, जो अनुभव किया, उससे मैं कह सकता हूँ कि हम सोचते हैं, उससे भी ज्यादा जन-शक्ति अपरम्पार होती है। हमारे पूर्वज कहा करते थे कि जनता-जनार्दन, ये ईश्वर का ही अंश होता है। मैं ‘मन की बात’ के मेरे अनुभवों से कह सकता हूँ कि हमारे पूर्वजों की सोच में एक बहुत बड़ी शक्ति है, बहुत बड़ी सच्चाई है, क्योंकि मैंने ये अनुभव किया है। ‘मन की बात’ के लिए मैं लोगों से सुझाव माँगता था और शायद हर बार दो या चार सुझावों को ही हाथ लगा पाता था। लेकिन लाखों की तादाद में लोग सक्रिय हो करके मुझे सुझाव देते रहते थे। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी शक्ति है, वर्ना प्रधानमंत्री को सन्देश दिया, mygov.in पर लिख दिया, चिठ्ठी भेज दी, लेकिन एक बार भी हमारा मौका नहीं मिला, तो कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगा।

हाँ… मुझे इन लाखों पत्रों ने एक बहुत बड़ा पाठ भी पढ़ाया। सरकार की अनेक बारीक़ कठिनाइयों के विषय में मुझे जानकारी मिलती रही और मैं आकाशवाणी का भी अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इन सुझावों को सिर्फ एक कागज़ नहीं माना, एक जन-सामान्य की आकांक्षा माना। उन्होंने इसके बाद कार्यक्रम किये। सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों को आकाशवाणी में बुलाया और जनता-जनार्दन ने जो बातें कही थीं, उनके सामने रखीं। कुछ बातों का निराकरण करवाने का प्रयास किया। सरकार के भी हमारे भिन्न-भिन्न विभागों ने, लोगों में इन पत्रों का analysis किया और वो कौन-सी बातें हैं कि जो policy matters हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो person के कारण परेशानी हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो सरकार के ध्यान में ही नहीं हैं? बहुत सी बातें grass-root level से सरकार के पास आने लगीं और ये बात सही है कि governance का एक मूलभूत सिद्धांत है कि जानकारी नीचे से ऊपर की तरफ जानी चाहिए और मार्गदर्शन ऊपर से नीचे की तरफ जाना चाहिये। ये जानकारियों का स्रोत, ‘मन की बात’ बन जाएगा, ये कहाँ सोचा था किसी ने? लेकिन ये हो गया।

और उसी प्रकार से ‘मन की बात’ ने समाज- शक्ति की अभिव्यक्ति का एक अवसर बना दिया। मैंने एक दिन ऐसे ही कह दिया था कि सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और सारी दुनिया अचरज हो गयी, शायद दुनिया के सभी देशों से किसी-न-किसी ने लाखों की तादाद में सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और बेटी को क्या गरिमा मिल गयी। और जब वो सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) करता था, तब अपनी बेटी का तो हौसला बुलंद करता था, लेकिन अपने भीतर भी एक commitment पैदा करता था। जब लोग देखते थे, उनको भी लगता था कि बेटियों के प्रति उदासीनता अब छोड़नी होगी। एक Silent Revolution था।

भारत के tourism को ध्यान में रखते हुए मैंने ऐसे ही नागरिकों को कहा था, “Incredible India”, कि भई, आप भी तो जाते हो, जो कोई अच्छी तस्वीर हो, तो भेज देना, मैं देखूंगा। यूँ ही हलकी-फुलकी बात की थी, लेकिन क्या बड़ा गज़ब हो गया! लाखों की तादाद में हिन्दुस्तान के हर कोने की ऐसी-ऐसी तस्वीरें लोगों ने भेजीं। शायद भारत सरकार के tourism ने, राज्य सरकार के tourism department ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि हमारे पास ऐसी-ऐसी विरासतें हैं। एक platform पर सब चीज़ें आयीं और सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। लोगों ने काम को बढ़ा दिया।

मुझे ख़ुशी तो तब हुई कि पिछले अक्टूबर महीने के पहले मेरी जो पहली ‘मन की बात’ थी, तो मैंने गाँधी जयंती का उल्लेख किया था और लोगों को ऐसे ही मैंने प्रार्थना की थी कि 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी की जयंती हम मना रहे हैं। एक समय था, खादी फॉर नेशन (Khadi for Nation). क्या समय का तकाज़ा नहीं है कि खादी फॉर फैशन (Khadi for Fashion) – और लोगों को मैंने आग्रह किया था कि आप खादी खरीदिये। थोडा बहुत कीजिये। आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूँ कि पिछले एक वर्ष में करीब-करीब खादी की बिक्री डबल हुई है। अब ये कोई सरकारी advertisement से नहीं हुआ है। अरबों-खरबों रूपए खर्च कर के नहीं हुआ है। जन-शक्ति का एक एहसास, एक अनुभूति।

एक बार मैंने ‘मन की बात’ में कहा था, गरीब के घर में चूल्हा जलता है, बच्चे रोते रहते हैं, गरीब माँ – क्या उसे gas cylinder नहीं मिलना चाहिए? और मैंने सम्पन्न लोगों से प्रार्थना की थी कि आप subsidy surrender नहीं कर सकते क्या? सोचिये… और मैं आज बड़े आनंद के साथ कहना चाहता हूँ कि इस देश के तीस लाख परिवारों ने gas cylinder की subsidy छोड़ दी है – और ये अमीर लोग नहीं हैं। एक TV channel पर मैंने देखा था कि एक retired teacher, विधवा महिला, वो क़तार में खड़ी थी subsidy छोड़ने के लिए। समाज के सामान्य जन भी, मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग जिनके लिए subsidy छोड़ना मुश्किल काम है। लेकिन ऐसे लोगों ने छोड़ा। क्या ये Silent Revolution नहीं है? क्या ये जन-शक्ति के दर्शन नहीं हैं?

सरकारों को भी सबक सीखना होगा कि हमारी सरकारी चौखट में जो काम होता है, उस चौखट के बाद एक बहुत बड़ी जन-शक्ति का एक सामर्थ्यवान, ऊर्जावान और संकल्पवान समाज है। सरकारें जितनी समाज से जुड़ करके चलती हैं, उतनी ज्यादा समाज में परिवर्तन के लिए एक अच्छी catalytic agent के रूप में काम कर सकती हैं। ‘मन की बात’ में, मुझे सब जिन चीज़ों में मेरा भरोसा था, लेकिन आज वो विश्वास में पलट गया, श्रद्धा में पलट गया और इसलिये मैं आज ‘मन की बात’ के माध्यम से फिर एक बार जन-शक्ति को शत-शत वन्दन करना चाहता हूँ, नमन करना चाहता हूँ। हर छोटी बात को अपनी बना ली और देश की भलाई के लिए अपने-आप को जोड़ने का प्रयास किया। इससे बड़ा संतोष क्या हो सकता है?

‘मन की बात’ में इस बार मैंने एक नया प्रयोग करने के लिए सोचा। मैंने देश के नागरिकों से प्रार्थना की थी कि आप telephone करके अपने सवाल, अपने सुझाव दर्ज करवाइए, मैं ‘मन की बात’ में उस पर ध्यान दूँगा। मुझे ख़ुशी है कि देश में से करीब पचपन हज़ार से ज़्यादा phone calls आये। चाहे सियाचिन हो, चाहे कच्छ हो या कामरूप हो, चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी हो। हिन्दुस्तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से लोगों ने phone calls न किये हों। ये अपने-आप में एक सुखद अनुभव है। सभी उम्र के लोगों ने सन्देश दिए हैं। कुछ तो सन्देश मैंने खुद ने सुनना भी पसंद किया, मुझे अच्छा लगा। बाकियों पर मेरी team काम कर रही है। आपने भले एक मिनट-दो मिनट लगाये होंगे, लेकिन मेरे लिए आपका phone call, आपका सन्देश बहुत महत्वपूर्ण है। पूरी सरकार आपके सुझावों पर ज़रूर काम करेगी।

लेकिन एक बात मेरे लिए आश्चर्य की रही और आनंद की रही। वैसे ऐसा लगता है, जैसे चारों तरफ negativity है, नकारात्मकता है। लेकिन मेरा अनुभव अलग रहा। इन पचपन हज़ार लोगों ने अपने तरीके से अपनी बात बतानी थी। बे-रोकटोक था, कुछ भी कह सकते थे, लेकिन मैं हैरान हूँ, सारी बातें ऐसी ही थीं, जैसे ‘मन की बात’ की छाया में हों। पूरी तरह सकारात्मक, सुझावात्मक, सृजनात्मक – यानि देखिये देश का सामान्य नागरिक भी सकारात्मक सोच ले करके चल रहा है, ये तो कितनी बड़ी पूंजी है देश की। शायद 1%, 2% ऐसे फ़ोन हो सकते हैं जिसमें कोई गंभीर प्रकार की शिकायत का माहौल हो। वर्ना 90% से भी ज़्यादा एक ऊर्जा भरने वाली, आनंद देने वाली बातें लोगों ने कही हैं।

एक बात और ध्यान में मेरे आई, ख़ास करके specially abled – उसमें भी ख़ासकर के दृष्टिहीन अपने स्वजन, उनके काफी फ़ोन आये हैं। लेकिन उसका कारण ये होगा, शायद ये TV देख नहीं पाते, ये रेडियो ज़रूर सुनते होंगे। दृष्टिहीन लोगों के लिए रेडियो कितना बड़ा महत्वपूर्ण होगा, वो मुझे इस बात से ध्यान में आया है। एक नया पहलू मैं देख रहा हूँ, और इतनी अच्छी-अच्छी बातें बताई हैं इन लोगों ने और सरकार को भी संवेदनशील बनाने के लिए काफी है।

मुझे अलवर, राजस्थान से पवन आचार्य ने एक सन्देश दिया है, मैं मानता हूँ, पवन आचार्य की बात पूरे देश को सुननी चाहिए और पूरे देश को माननी चाहिए। देखिये, वो क्या कहना चाहते हैं, जरुर सुनिए –

“मेरा नाम पवन आचार्य है और मैं अलवर, राजस्थान से बिलॉन्ग करता हूँ। मेरा मेसेज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से यह है कि कृपया आप इस बार ‘मन की बात’ में पूरे भारत देश की जनता से आह्वान करें कि दीवाली पर वो अधिक से अधिक मिट्टी के दियों का उपयोग करें। इस से पर्यावरण का तो लाभ होगा ही होगा और हजारों कुम्हार भाइयों को रोज़गार का अवसर मिलेगा। धन्यवाद।”

पवन, मुझे विश्वास है कि पवन की तरह आपकी ये भावना हिन्दुस्तान के हर कोने में जरुर पहुँच जाएगी, फैल जाएगी। अच्छा सुझाव दिया है और मिट्टी का तो कोई मोल ही नहीं होता है, और इसलिए मिट्टी के दिये भी अनमोल होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी उसकी एक अहमियत है और दिया बनता है गरीब के घर में, छोटे-छोटे लोग इस काम से अपना पेट भरते हैं और मैं देशवासियों को जरुर कहता हूँ कि आने वाले त्योहारों में पवन आचार्य की बात अगर हम मानेंगे, तो इसका मतलब है, कि दिया हमारे घर में जलेगा, लेकिन रोशनी गरीब के घर में होगी।

मेरे प्यारे देशवासियो, गणेश चतुर्थी के दिन मुझे सेना के जवानों के साथ दो-तीन घंटे बिताने का अवसर मिला। जल, थल और नभ सुरक्षा करने वाली हमारी जल सेना हो, थल सेना हो या वायु सेना हो – Army, Air Force, Navy. 1965 का जो युद्ध हुआ था पाकिस्तान के साथ, उसको 50 वर्ष पूर्ण हुए, उसके निमित्त दिल्ली में इंडिया गेट के पास एक ‘शौर्यांजलि’ प्रदर्शनी की रचना की है। मैं उसे चाव से देखता रहा, गया था तो आधे घंटे के लिए, लेकिन जब निकला, तब ढाई घंटे हो गए और फिर भी कुछ अधूरा रह गया। क्या कुछ वहाँ नही था? पूरा इतिहास जिन्दा कर के रख दिया है। Aesthetic दृष्टि से देखें, तो भी उत्तम है, इतिहास की दृष्टि से देखें, तो बड़ा educative है और जीवन में प्रेरणा के लिए देखें, तो शायद मातृभूमि की सेवा करने के लिए इस से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है। युद्ध के जिन proud moments और हमारे सेनानियों के अदम्य साहस और बलिदान के बारे में हम सब सुनते रहते थे, उस समय तो उतने photograph भी available नहीं थे, इतनी videography भी नहीं होती थी। इस प्रदर्शनी के माध्यम से उसकी अनुभूति होती है।

लड़ाई हाजीपीर की हो, असल उत्तर की हो, चामिंडा की लड़ाई हो और हाजीपीर पास के जीत के दृश्यों को देखें, तो रोमांच होता है और अपने सेना के जवानों के प्रति गर्व होता है। मुझे इन वीर परिवारों से भी मिलना हुआ, उन बलिदानी परिवारों से मिलना हुआ और युद्ध में जिन लोगों ने हिस्सा लिया था, वे भी अब जीवन के उत्तर काल खंड में हैं। वे भी पहुँचे थे। और जब उन से हाथ मिला रहा था तो लग रहा था कि वाह, क्या ऊर्जा है, एक प्रेरणा देता था। अगर आप इतिहास बनाना चाहते हैं, तो इतिहास की बारीकियों को जानना-समझना ज़रूरी होता है। इतिहास हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इतिहास से अगर नाता छूट जाता है, तो इतिहास बनाने की संभावनाओं को भी पूर्ण विराम लग जाता है। इस शौर्य प्रदर्शनी के माध्यम से इतिहास की अनुभूति होती है। इतिहास की जानकारी होती है। और नये इतिहास बनाने की प्रेरणा के बीज भी बोये जा सकते हैं। मैं आपको, आपके परिवारजनों को – अगर आप दिल्ली के आस-पास हैं – शायद प्रदर्शनी अभी कुछ दिन चलने वाली है, आप ज़रूर देखना। और जल्दबाजी मत करना मेरी तरह। मैं तो दो-ढाई घंटे में वापिस आ गया, लेकिन आप को तो तीन-चार घंटे ज़रूर लग जायेंगे। जरुर देखिये।

लोकतंत्र की ताकत देखिये, एक छोटे बालक ने प्रधानमंत्री को आदेश किया है, लेकिन वो बालक जल्दबाजी में अपना नाम बताना भूल गया है। तो मेरे पास उसका नाम तो है नहीं, लेकिन उसकी बात प्रधानमंत्री को तो गौर करने जैसी है ही है, लेकिन हम सभी देशवासियों को गौर करने जैसी है। सुनिए, ये बालक हमें क्या कह रहा है:

“प्रधानमंत्री मोदी जी, मैं आपको कहना चाहता हूँ कि जो आपने स्वच्छता अभियान चलाया है, उसके लिये आप हर जगह, हर गली में डस्टबिन लगवाएं।”

इस बालक ने सही कहा है। हमें स्वच्छता एक स्वभाव भी बनाना चाहिये और स्वच्छता के लिए व्यवस्थायें भी बनानी चाहियें। मुझे इस बालक के सन्देश से एक बहुत बड़ा संतोष मिला। संतोष इस बात का मिला, 2 अक्टूबर को मैंने स्वच्छ भारत को लेकर के एक अभियान को चलाने की घोषणा की, और मैं कह सकता हूँ, शायद आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि संसद में भी घंटों तक स्वच्छता के विषय पर आजकल चर्चा होती है। हमारी सरकार की आलोचना भी होती है। मुझे भी बहुत-कुछ सुनना पड़ता है, कि मोदी जी बड़ी-बड़ी बातें करते थे स्वच्छता की, लेकिन क्या हुआ ? मैं इसे बुरा नहीं मानता हूँ। मैं इसमें से अच्छाई यह देख रहा हूँ कि देश की संसद भी भारत की स्वच्छता के लिए चर्चा कर रही है।

और दूसरी तरफ देखिये, एक तरफ संसद और एक तरफ इस देश का शिशु – दोनों स्वच्छता के ऊपर बात करें, इससे बड़ा देश का सौभाग्य क्या हो सकता है। ये जो आन्दोलन चल रहा है विचारों का, गन्दगी की तरफ नफरत का जो माहौल बन रहा है, स्वच्छता की तरफ एक जागरूकता आयी है – ये सरकारों को भी काम करने के लिए मजबूर करेगी, करेगी, करेगी! स्थानीय स्वराज की संस्थाओं को भी – चाहे पंचायत हो, नगर पंचायत हो, नगर पालिका हो, महानगरपालिका हो या राज्य हो या केंद्र हो – हर किसी को इस पर काम करना ही पड़ेगा। इस आन्दोलन को हमें आगे बढ़ाना है, कमियों के रहते हुए भी आगे बढ़ाना है और इस भारत को, 2019 में जब महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती हम मनायेंगे, महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने की दिशा में हम काम करें।

और आपको मालूम है, महात्मा गांधी क्या कहते थे? एक बार उन्होंने कहा है कि आज़ादी और स्वच्छता दोनों में से मुझे एक पसंद करना है, तो मैं पहले स्वच्छता पसंद करूँगा, आजादी बाद में। गांधी के लिए आजादी से भी ज्यादा स्वच्छता का महत्त्व था। आइये, हम सब महात्मा गांधी की बात को मानें और उनकी इच्छा को पूरी करने के लिए कुछ कदम हम भी चलें। दिल्ली से गुलशन अरोड़ा जी ने MyGov पर एक मेसेज छोड़ा है।

उन्होंने लिखा है कि दीनदयाल जी की जन्म शताब्दी के बारे में वो जानना चाहते हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, महापुरुषों का जीवन सदा-सर्वदा हमारे लिए प्रेरणा का कारण रहता है। और हम लोगों का काम, महापुरुष किस विचारधारा के थे, उसका मूल्यांकन करना हमारा काम नहीं है। देश के लिये जीने-मरने वाले हर कोई हमारे लिये प्रेरक होते हैं। और इन दिनों में तो इतने सारे महापुरुषों को याद करने का अवसर आ रहा है, 25 सितम्बर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय, 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण जी, 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल – कितने अनगिनत नाम हैं, मैं तो बहुत कुछ ही बोल रहा हूँ, क्योंकि ये देश तो बहुरत्ना वसुंधरा है।

आप कोई भी date निकाल दीजिये, इतिहास के झरोखे से कोई-न-कोई महापुरुष का नाम मिल ही जाएगा। आने वाले दिनों में इन सभी महापुरुषों को हम याद करें, उनके जीवन का सन्देश हम घर-घर तक पहुंचायें और हम भी उनसे कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करें।

मैं विशेष करके 2 अक्टूबर के लिए फिर से एक बार आग्रह करना चाहता हूँ। 2 अक्टूबर पूज्य बापू महात्मा गांधी की जन्म-जयन्ती है। मैंने गत वर्ष भी कहा था कि आपके पास हर प्रकार के fashion के कपड़े होंगे, हर प्रकार का fabric होगा, बहुत सी चीजें होंगी, लेकिन उसमें एक खादी का भी स्थान होना चाहिये। मैं एक बार फिर कहता हूँ कि 2 अक्टूबर से लेकर के एक महीने भर खादी में रियायत होती है, उसका फायदा उठाया जाए। और खादी के साथ-साथ handloom को भी उतना ही महत्व दिया जाये। हमारे बुनकर भाई इतनी मेह्नत करते हैं, हम सवा सौ करोड़ देशवासी 5 रूपया, 10 रुपया, 50 रूपया की भी कोई हैंडलूम की चीज़, कोई खादी की चीज़ ख़रीद लें, ultimately वो पैसा, वो गरीब बुनकर के घर में जायेगा। खादी बनाने वाली ग़रीब विधवा के घर में जायेगा। और इसलिए इस दीवाली में हम खादी को ज़रुर अपने घर में जगह दें, अपने शरीर पर जगह दें। मैं कभी ये आग्रह नहीं करता हूँ कि आप पूर्ण रूप से खादीधारी बनें! कुछ – बस, इतना ही आग्रह है मेरा। और देखिये, पिछली बार क़रीब-क़रीब बिक्री को double कर दिया। कितने ग़रीबों का फ़ायदा हुआ है। जो काम सरकार अरबों-खरबों रूपये के advertisement से नहीं कर सकती है, वो आप लोगों ने छोटे से मदद से कर दी। यही तो जनशक्ति है। और इसलिए मैं फिर से एक बार उस काम के लिए आपको आग्रह करता हूँ।

प्यारे देशवासियो, मेरा मन एक बात से बहुत आनंद से भर गया है। मन करता है, इस आनंद का आपको भी थोड़ा स्वाद मिलना चाहिये। मैं मई महीने में कोलकाता गया था और सुभाष बोस के परिवारजन मिलने आये थे। उनके भतीजे चंद्रा बोस ने सब organize किया था। काफी देर तक सुभाष बाबू के परिवारजनों के साथ हंसी-खुशी की शाम बिताने का मुझे अवसर मिला था। और उस दिन ये तय किया था कि सुभाष बाबू का वृहत परिवार प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आये। चंद्रा बोस और उनके परिवारजन इस काम में लगे रहे थे और पिछले हफ्ते मुझे confirmation मिला कि 50 से अधिक सुभाष बाबू के परिवारजन प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आने वाले हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, मेरे लिए कितनी बड़ी खुशी का पल होगा! नेताजी के परिवारजन, शायद उनके जीवन में पहली बार सबको मिलकर के एक साथ प्रधानमंत्री निवास जाने का अवसर आया होगा। लेकिन उससे ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री निवास-स्थान में ऐसी मेहमाननवाज़ी का सौभाग्य कभी भी नहीं आया होगा, जो मुझे अक्टूबर में मिलने वाला है। सुभाष बाबू के 50 से अधिक – और सारे परिवार के लोग अलग-अलग देशों में रहते हैं – सब लोग खास आ रहे हैं। कितना बड़ा आनंद का पल होगा मेरे लिए। मैं उनके स्वागत के लिए बहुत खुश हूँ, बहुत ही आनंद की अनुभूति कर रहा हूँ।

एक सन्देश मुझे भार्गवी कानड़े की तरफ से मिला और उसका बोलने का ढंग, उसकी आवाज़, ये सब सुन करके मुझे ये लगा, वो ख़ुद भी लीडर लगती है और शायद लीडर बनने वाली होगी, ऐसा लगता है।

“मेरा नाम भार्गवी कानड़े है। मैं प्रधानमंत्री जी से ये निवेदन करना चाहती हूँ कि आप युवा पीढ़ी को voters registration के बारे में जागृत करें, जिससे आने वाले समय में युवा पीढ़ी का सहभाग बढ़े और भविष्य में युवा पीढ़ी का महत्वपूर्ण सहयोग सरकार चुनने में हो और चलाने में भी हो सके। धन्यवाद।”

भार्गवी ने कहा है कि मतदाता सूची में नाम register करवाने की बात और मतदान करने की बात। आपकी बात सही है। लोकतंत्र में हर मतदाता देश का भाग्यविधाता होता है और ये जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। मतदान का परसेंटेज भी बढ़ रहा है। और मैं इसके लिए भारत के चुनाव आयोग को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूँ। कुछ वर्ष पहले हम देखते थे कि हमारा Election Commission एक सिर्फ़ regulator के रूप में काम कर रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसमें बहुत बड़ा बदलाव आया है। आज हमारा Election Commission सिर्फ़ regulator नहीं रहा है, एक प्रकार से facilitator बन गया है, voter-friendly बन गया है और उनकी सारी सोच, सारी योजनाओं में मतदाता उनके केंद्र में रहता है। ये बहुत अच्छा बदलाव आया है। लेकिन सिर्फ़ चुनाव आयोग काम करता रहे, इससे चलने वाला नहीं है। हमें भी स्कूल में, कॉलेज में, मोहल्ले में, ये जागृति का माहौल बनाये रखना चाहिये – सिर्फ़ चुनाव आये, तब जागृति हो, ऐसा नहीं। मतदाता सूची अपग्रेड होती रहनी चाहिये, हमें भी देखते रहना चाहिये। मुझे अमूल्य जो अधिकार मिला है, वो मेरा अधिकार सुरक्षित है कि नहीं, मैं अधिकार का उपयोग कर रहा हूँ कि नहीं कर रहा हूँ, ये आदत हम सबको बनानी चाहिये। मैं आशा करता हूँ, देश के नौजवान अगर मतदाता सूची में register नहीं हुए हैं, तो उन्हें होना चाहिये और मतदान भी अवश्य करना चाहिये। और मैं तो चुनावों के दिनों में publicly कहा करता हूँ कि पहले मतदान, फिर जलपान। इतना पवित्र काम है, हर किसी ने करना चाहिये।

परसों मैं काशी का भ्रमण करके आया। बहुत लोगों से मिला, बहुत सारे कार्यक्रम हुए। इतने लोगों से मिला, लेकिन दो बालक, जिनकी बात मैं आपसे करना चाहता हूँ। एक मुझे क्षितिज पाण्डेय करके 7वीं कक्षा का छात्र मिला। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में केंद्रीय विद्यालय में वो 7वीं कक्षा में पढ़ता है। वैसे है बड़ा तेजतर्रार। उसका confidence level भी बड़ा गज़ब है| लेकिन इतनी छोटी आयु में Physics के अनुसंधान में उसकी रूचि मैंने देखी। मुझे लगा कि बहुत-कुछ वो पढ़ता होगा, internet surfing करता होगा, नये-नये प्रयोग देखता होगा, Rail Accidents कैसे रोके जाएँ, कौन सी technology हो, energy में खर्चा कैसे कम हो, Robots में feelings कैसे आये, न-जाने क्या-क्या बातें बता रहा था। बड़ा गज़ब का था, भाई! खैर, मैं बारीकी से उसका ये तो नहीं देख पाया कि वो जो कह रहा है, उसमें कितनी बारीकी है, क्या है, लेकिन उसका confidence level, उसकी रुचि, और मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के बालकों की विज्ञान के प्रति रुचि बढ़नी चाहिये। बालक के मन में लगातार सवाल उठने चाहिये – क्यों? कैसे? कब? ये बालक मन से पूछना चाहिये।

वैसे ही मुझे सोनम पटेल, एक बहुत ही छोटी बालिका से मिलना हुआ। 9 साल की उम्र है। वाराणसी के सुन्दरपुर निवासी सदावृत पटेल की वो एक बेटी, बहुत ही गरीब परिवार की बेटी है। और मैं हैरान था कि बच्ची, पूरी गीता उसको कंठस्थ है। लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी कि जब मैंने उसको पूछा, तो वो श्लोक भी बताती थी, अंग्रेजी में interpretation करती थी, उसकी परिभाषा करती थी, हिन्दी में परिभाषा करती थी। मैंने उनके पिताजी को पूछा, तो बोले, वो पांच साल की उम्र से बोल रही है। मैंने कहा, कहाँ सीखा? बोले, हमें भी मालूम नहीं है। तो मैंने कहा, और पढ़ाई में क्या हाल है, सिर्फ़ गीता ही पढ़ती रहती है और भी कुछ करती है? तो उन्होंने कहा, नहीं जी, वो Mathematics एक बार हाथ में ले ले, तो शाम को उसको सब मुखपाठ होता है। History ले ले, शाम को सब याद होता है। बोले, हम लोगों के लिए भी आश्चर्य है, पूरे परिवार में कि कैसे उसके अंदर है। मैं सचमुच में बड़ा प्रभावित था। कभी कुछ बच्चों को celebrity का शौक हो जाता है, ऐसा ही सोनम में कुछ नहीं था। अपने आप में ईश्वर ने कोई शक्ति ज़रूर दी है, ऐसा लग रहा था मुझे।

खैर इन दोनों बच्चे, मेरी काशी यात्रा में एक विशेष मेरी मुलाक़ात थी। तो मुझे लगा, आपसे भी बता दूं। TV पर जो आप देखते हैं, अखबारों में पढ़ते हैं, उसके सिवाय भी बहुत सारे काम हम करते हैं। और कभी-कभी ऐसे कामों का कुछ आनंद भी आता है। वैसा ही, इन दो बालकों के साथ, मेरी बातचीत मेरे लिए यादगार थी।

मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ में कुछ लोग मेरे लिए काफी कुछ काम लेकर के आते हैं। देखिये, हरियाणा के संदीप क्या कह रहे हैं – “संदीप, हरियाणा। सर, मैं चाहता हूँ कि आप जो ‘मन की बात’ ये महीने में एक बार करते हैं, आपको वीकली करनी चाहिए, क्योंकि आपकी बात से बहुत प्रेरणा मिलती है।”

संदीप जी, आप क्या-क्या करवाओगे मेरे पास? महीने में एक बार करने के लिए भी मुझे इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, समय का इतना adjust करना पड़ता है। कभी-कभी तो हमारे आकाशवाणी के सारे हमारे साथियों को आधा-आधा पौना-पौना घंटा मेरा इंतजार करके बैठे रहना पड़ता है। लेकिन मैं आपकी भावना का आदर करता हूँ। आपके सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ। अभी तो एक महीने वाला ही ठीक है।

‘मन की बात’ का एक प्रकार से एक साल पूरा हुआ है। आप जानते हैं, सुभाष बाबू रेडियो का कितना उपयोग करते थे? जर्मनी से उन्होंने अपना रेडियो शुरू किया था। और हिन्दुस्तान के नागरिकों को आज़ादी के आन्दोलन के सम्बन्ध में वो लगातार रेडियो के माध्यम से बताते रहते थे। आज़ाद हिन्द रेडियो की शुरुआत एक weekly News Bulletin से उन्होंने की थी। अंग्रेजी, हिन्दी, बंगाली, मराठी, पंजाबी, पश्तो, उर्दू – सभी भाषाओं में ये रेडियो वो चलाते थे।

मुझे भी अब आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ करते-करते अब एक साल हो गया है। मेरे मन की बात आपके कारण सच्चे अर्थ में आपके मन की बात बन गयी है। आपकी बातें सुनता हूँ, आपके लिए सोचता हूँ, आपके सुझाव देखता हूँ, उसी से मेरे विचारों की एक दौड़ शुरू हो जाती है, जो आकाशवाणी के माध्यम से आपके पास पहुँचती है। बोलता मैं हूँ, लेकिन बात आपकी होती है और यही तो मेरा संतोष है। अगले महीने ‘मन की बात’ के लिए फिर से मिलेंगे। आपके सुझाव मिलते रहें। आपके सुझावों से सरकार को भी लाभ होता है। सुधार की शुरुआत होती है। आपका योगदान मेरे लिए बहुमूल्य है, अनमोल है।

फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें। धन्यवाद।

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मोदी के मन की बात: 13वां एपिसोड (25 अक्टूबर 2015)

pm modi in mann ki baat

pm modi in mann ki baat

मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार। फिर एक बार मन की बात से आप सबके साथ जुड़ने का सौभाग्य मुझे मिला है। आज भारत – दक्षिण अफ्रीका के बीच पाँचवा One-day मैच मुम्बई में खेलने जा रहा है। ये सीरीज है जिसका नाम ‘गांधी मंडेला’ सीरीज दिया गया है। अभी तक सीरीज रोमांचक मोड़ पर है। दोनों टीम दो-दो मैच जीत चुकी हैं। और इसीलिये आखिरी मैच का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है। मेरी सभी खिलाडियों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

आज मैं आकाशवाणी के कन्नूर केंद्र के मित्रों को बधाई देना चाहता हूँ। बधाई इसलिए देनी है कि जब मैंने ‘मन की बात’ प्रारंभ की तो कई लोग उससे जुड़ते चले गए। उसमें केरल की एक 12वीं की छात्रा श्रद्धा थामबन जुड़ी थीं। कन्नूर केंद्र ने बाद में उसको बुलाया, और एक समारोह आयोजित किया और काफी कुछ feedback का माहौल बना। एक अपनापन का भाव बना। और एक 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली श्रद्धा की इस जागरूकता को कन्नूर के आकाशवाणी केंद्र ने सराहा। उसको पुरुस्कृत किया। कन्नूर आकाशवाणी केंद्र की इस बात से मुझे ही प्रेरणा मिल गयी। और मैं चाहूँगा कि देशभर में ऐसे आकाशवाणी केंद्र अगर अपने-अपने इलाके में इस प्रकार से जागरूक और सक्रिय लोगों की तरफ उनका ध्यान जायेगा तो जन-भागीदारी से देश चलाने का हमारा जो मकसद है उसको एक नई ताकत मिलेगी। और इसलिये मैं कन्नूर आकाशवाणी केंद्र के सभी साथियों को ह्रदय से बहुत-बहुत अभिनन्दन करता हूँ, बधाई देता हूँ। मुझे फिर से एक बार आज केरल की बात करनी है। केरल के कोच्चि के चित्तूर के Saint Mary Upper-primary School की छात्राओं ने मुझे एक पत्र भेजा है। पत्र अनेक रूप से विशेष है। एक तो इन बालिकाओं ने अपने अंगूठे के निशान से भारत-माता का एक चित्र बनाया है, बहुत बड़े कपड़े पर। वो भारत-माता का, भारत के नक़्शे का वो चित्र मुझे भेजा है। पहले मैं हैरान था कि उन्होंनें अपने अंगूठे के निशान से भारत का नक्शा क्यों बनाया। लेकिन मैंने जब उनका पत्र पढ़ा तो मुझे समझ आया कि कितना बढ़िया symbolic सन्देश उन्होनें दिया है। ये वो बालिकायें हैं जिन्होंने सिर्फ प्रधानमंत्री को जागृत करने का प्रयास किया है, ऐसा नहीं है। वो, अपने क्षेत्र में भी, लोगों को जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं और उनका मिशन है ‘अंगदान’। Organ donation के लिए वे जन-जागरूकता अभियान चला रही हैं। उन्होंने अनेक स्थानों पर जा करके नाट्य मंचन भी किये हैं, ताकि लोगों में अंगदान की समझ फैले। अंगदान एक वृति और प्रवृति बने। इन बालिकाओं ने मुझे चिट्ठी में लिखा है, कि आप अपने मन की बात में organ donation के विषय में लोगों से अपील कीजिये। महाराष्ट्र के क़रीब 80 वर्षीय वसंतराव सुड़के गुरूजी। वो तो हमेशा एक movement चलाते रहते हैं। वो कहते हैं अंगदान को एक उत्सव बनाना चाहिये। इन दिनों मुझे phone call पर भी काफ़ी सन्देश आते हैं। दिल्ली के देवेश ने भी ऐसा ही एक सन्देश मुझे दिया है। ‘I am very happy with the government initiative on the organ donation and steps towards creating a policy on the same. The country really needs support in these tongues where people need to go out and help each other and the ambitious target of one per million organ donation in a very productive steps taken by the government. यह विषय काफी महत्वपूर्ण है ऐसा मुझे लगता है। देश में प्रतिवर्ष ढाई लाख से भी अधिक kidney, heart और liver donation की ज़रूरत है। लेकिन सवा-सौ करोड़ के देश में हम सिर्फ पाँच हज़ार transplant को ही सफल कर पाते हैं। हर साल एक लाख आँखों की रोशनी की ज़रूरत होती है। और हम सिर्फ़ पच्चीस हज़ार तक पहुँच पाते हैं। चार आँखों की जरूरत हो, हम सिर्फ एक दे पाते हैं। सड़क दुर्घटना में मृत्यु होने पर शरीर के organ को donate किया जा सकता है। कुछ क़ानूनी उलझनें भी बहुत हैं। राज्यों को भी इस दिशा में मार्गदर्शन करने का प्रयास हुआ है।

कुछ राज्यों ने कागज़ी कार्रवाई को कम करके इसमें गति लाने का काफी अच्छा प्रयास किया है। आज मैं कह सकता हूँ, कि organ donation अंगदान के क्षेत्र में तमिलनाडु अग्रिम पंक्ति में है। कई सामाजिक संस्थाएँ, कई NGOs बहुत ही अच्छा काम इस दिशा में कर रहे हैं। organ transplant को बढ़ावा देने के लिए Nation Organ and Tissue Transplant Organization (NOTO) की स्थापना की गई है। एक 24×7 Helpline 1800114770 ये भी सेवा उपलब्ध है। और हमारे यहाँ तो यह कहा गया है ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ त्याग करने का जो आनंद होता है, उसका बहुत उत्तम वर्णन ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ इस मंत्र में है। पिछले दिनों हम सबने टीवी पर देखा था कि दिल्ली के जी.बी. पन्त हॉस्पिटल में एक गरीब ठेलेवाला, हॉकर, उसकी पत्नी का Liver Transplant किया गया। और ये Liver विशेष इंतज़ाम करके लखनऊ से दिल्ली लाया गया था। और वो ऑपरेशन सफ़ल रहा। एक ज़िंदगी बच गयी। ‘अंगदान महादान’। ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ इस भाव को हम चरितार्थ करें और इस बात को हम अवश्य बल दें।

प्यारे देशवासियो, अभी-अभी हमने नवरात्रि और विजयदशमी का पर्व मनाया। और कुछ दिनों के बाद दीपावली का पर्व भी मनाएँगे। ईद भी मनाई, गणेश-चतुर्थी भी मनाई है। लेकिन इस बीच, देश एक बड़ा उत्सव मनाने जा रहा है। हम सभी देशवासियों को गौरव हो, अभिमान हो। आने वाले 26 से 29 अक्टूबर, भारत की राजधानी नई दिल्ली में ‘India-Africa Foreign Summit’ का आयोजन हो रहा है। भारत की धरती पर पहली बार इतने बड़े scale पर आयोजन हो रहा है। चव्वन अफ्रीकी देशों और यूनियनों के लीडर्स को आमंत्रित किया गया है। अफ्रीका के बाहर अफ्रीकन देशों का सबसे बड़ा एक सम्मलेन हो रहा है। भारत और अफ्रीका के सम्बन्ध गहरे हैं। जितनी जनसंख्या भारत की है उतनी ही जनसंख्या अफ्रीकन देशों की है। और दोनों की मिला दें तो हम दुनिया की एक तिहाई जनसंख्या हैं। और कहते हैं लाखों वर्ष पहले, यह एक ही भू-भाग था। बाद में हिंदमहासागर से ये दो टुकड़े विभाजित हुए। हमारे बीच बहुत साम्यता है। भारत की जीव-सृष्टि और अफ्रीका की जीव-सृष्टि बहुत प्रकार से मिलती-जुलती हैं। प्राकृतिक संसाधनों में भी हमारी काफ़ी निकटता है। और भारत के क़रीब 27 लाख लोग, इन देशों में बहुत लम्बे काल से बसे हुए हैं। भारत के अफ्रीकन देशों के साथ आर्थिक सम्बन्ध हैं, सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं, राजनयिक सम्बन्ध हैं, लेकिन सबसे ज्यादा अफ्रीकन देशों की युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करने में भारत बहुत बड़ी, अहम् भूमिका निभाता है। Human Resource Development, Capacity Building 25 हज़ार से ज्यादा अफ्रीकन student भारत में पढ़े हैं। और आज अफ्रीका के कई देश के नेता हैं, भारत में पढ़कर गए हैं। तो हमारा कितना गहरा नाता है। और उस दृष्टि से यह Summit बड़ा महत्वपूर्ण है। आम तौर पर जब सम्मिट होती है तब भिन्न-भिन्न देशों के मुखिया मिलते हैं। वैसे ही एक Summit में मुखियाओं की मीटिंग होने वाली है। देखिये ये हमारी कोशिश है कि ये जनता का भी मिलन होना चाहिये।

और इस बार, भारत सरकार ने, खासकर के HRD Ministry ने एक बड़ा ही अच्छा कार्यक्रम किया। CBSE के जितने भी affiliated स्कूल हैं, उनके बच्चों के बीच एक ‘Essay Competition’ का कार्यक्रम किया गया, कवितायें लिखने का कार्यक्रम किया गया, उनकी भागीदारी बढ़ाने का कार्यक्रम किया गया। क़रीब 16 सौ स्कूलों ने उसमें भाग लिया। भारत और भारत के बाहर के भी स्कूल थे। और हज़ारों-हजारों स्कूली बच्चों ने भारत-अफ्रीका संबंधों को बल देने वाली बातें लिखीं। दूसरी तरफ़, महात्मा गाँधी की जन्म भूमि पोरबंदर से ‘Memories of Mahatma’ एक प्रदर्शनी, मोबाइल प्रदर्शनी पोरबंदर से उत्तरी राज्यों का भ्रमण करते-करते 29 अक्टूबर को दिल्ली पहुँच रही है। लाखों स्कूली बच्चों ने इस प्रदर्शनी को देखा, गाँव-गाँव लोगों ने देखा। और अफ्रीका और भारत के संबंधों में महात्मा गाँधी की कैसी महान भूमिका रही थी, महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व का असर इन दोनों भू-भाग पर कितना रहा था, इसको लोगों ने जाना, पहचाना। ये जो प्रतियोगिता हुई, उसमें बहुत उत्तम प्रकार की रचनायें आईं। एक रचना की तरफ़ मेरा ध्यान जाता है, मुझे अच्छा लगा, इसलिए मैं आपको सुनाना चाहता हूँ। हमारे छोटे-छोटे स्थान पर स्कूलों के बच्चे भी कितने होनहार हैं, इनकी दृष्टि कितनी व्यापक है, और कितनी गहराई से सोचते हैं, इसका उसमें दर्शन होता है। मुज़फ्फरनगर, उत्तरप्रदेश, वहाँ से गरिमा गुप्ता ने स्पर्धा में एक कविता लिखी है। और बढ़िया लिखा है उसने। उसने लिखा है –

अफ्रीका में नील नदी, सागर का नाम है ‘लाल’।
महाद्वीप विशाल है, प्रवासी भारतीय ख़ुशहाल।।

जैसे सिन्धु घाटी की सभ्यता, है भारत की पहचान।
नील नदी और कार्थेज हैं, अफ्रीकी सभ्यता में महान।।

गाँधी जी ने शुरू किया, अफ्रीका से आन्दोलन।
ऐसा चलाया जादू सब पर, जीत लिया सबका मन।।

जोहान्सबर्ग हो या किंग्स्टन, जिम्बाब्वे हो या चाड।
सब अफ्रीकी देशों में, मिलती है हमारी आलू-चाट।।

लिखने को तो लिख डालूँ, पंक्ति कई हज़ार।
अफ्रीका के जंगलों से, करती हूँ मैं प्यार।।

वैसे कविता तो बहुत लम्बी है, लेकिन मैंने कुछ ही चीज़ों को आपको सुनाया है। वैसे तो ये Summit Indo-Africa है। लेकिन जन-जन को जोड़ने का कैसा अवसर बनता है, ये साफ़-साफ़ हमें दिखाई देता है। मैं गरिमा को, इसमें हिस्सा लेने वाले सभी बालकों को, 1600 से अधिक स्कूलों को और HRD Ministry को बहुत-बहुत अभिनन्दन करता हूँ।

मैंने 15 अगस्त को पिछली बार सांसद आदर्श ग्राम योजना के संबंध में एक प्रस्ताव रखा था। उसके बाद बहुत सारे सांसद मित्रों ने इस काम को साकार किया। बड़े मन से लगे रहे। पिछले महीने भोपाल में एक कार्यशाला हुई। जिसमें जहाँ ये आदर्श ग्राम हो रहे हैं, वहाँ के प्रधान, वहाँ के कलेक्टर, वहाँ के कुछ सांसद, भारत-सरकार, राज्य-सरकार सबने मिल कर के आदर्श ग्राम योजना के विषय पर गहरी चर्चा की। किस प्रकार की नई-नई चीज़ें ध्यान में आईं और बड़ी ही उत्साहवर्धक ध्यान में आईं। कुछ चीजें ज़रूर मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूँ… झारखण्ड, एक प्रकार से काफ़ी बड़ा प्रदेश, आदिवासी क्षेत्र है। दुर्भाग्य से माओवाद, उग्रपंथ, बम-बन्दूक, लहू-लुहान धरती झारखण्ड की जब बात आती है तो ये सारी बात सुनाई देती हैं। इन वामपंथी उग्रवादियों के प्रभाव के तहत वहाँ के कई इलाके बर्बाद हुए हैं।लेकिन वहाँ के हमारे सांसद, वैसे बहुत बड़े वरिष्ठ हैं, कभी संसद में डिप्टी-स्पीकर भी रहे हैं, श्रीमान करिया मुंडा जी, आदिवासियों के लिए उन्होंने अपनी जिंदगी खपाई हुई है। उन्होंने झारखण्ड के कुंती ज़िला के परसी ग्राम पंचायत को आदर्श ग्राम बनाने के लिए चुना। उग्रवादी, वामपंथी का राज जहाँ चलता था वहाँ सरकारी मुलाज़िमों के लिए जाना भी मुश्किल था। डॉक्टर तक जा नहीं पाते थे। उन्होंने खुद जाना-आना शुरू किया, लोगों में विश्वास पैदा किया, सरकारी व्यवस्थाओं में प्राण भरने की कोशिश की। आधिकारियों को आने के लिए प्रोत्साहित किया और एक लम्बे अरसे से उदासीनता का जो माहौल था, उसमें कुछ कर गुजरने की इच्छा पैदा की। आदर्श ग्राम में Infrastructure के और व्यवस्थाओं के साथ-साथ ये जन-चेतना जगाने का एक बड़ा ही सफल प्रयास, झारखण्ड के इस परसी गाँव में हुआ। मैं आदरणीय सांसद श्रीमान करिया मुंडा जी को बधाई देता हूँ।

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वैसी ही मुझे एक ख़बर मिली आंध्र से। आंध्र के सांसद अशोक गजपति राजू जी आदर्श ग्राम की योजना में वो खुद खप गए और उन्होंने आंध्र-प्रदेश के विजयानगरम ज़िले के द्वारापुड़ी ग्राम पंचायत को आदर्श ग्राम के लिए चुना। बाकी व्यवस्था तो हो रही है, लेकिन, उन्होंने एक बड़ा विशेष innovative काम किया। उन्होंने वहाँ के स्कूलों में जो विद्यार्थी पढ़ते हैं उनको एक काम दिया क्योंकि गाँव में नई पीढ़ी तो शिक्षा के लिए भाग्यशाली बनी है लेकिन गाँव की पुरानी पीढ़ी निरक्षर है तो उन्होंने जो बड़ी आयु के बच्चे थे उनको कहा कि अब हर दिन आपको अपने माँ-बाप को इस क्लास में पढ़ाना है और वो स्कूल एक प्रकार से सुबह बच्चों के लिए शिक्षा, और शाम को बच्चों को शिक्षक बनाने वाली शिक्षा देता है। और क़रीब-क़रीब पांच सौ पचास प्रौढ़ निरक्षर को इन्हीं बच्चों ने पढ़ाया, उनको साक्षर किया। देखिये, समाज में कोई बजट नहीं, कोई Circular नहीं, कोई ख़ास व्यवस्था नहीं, लेकिन, इच्छा-शक्ति से कितना बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है वे द्वारापुड़ी ग्राम पंचायत से देखने को मिल रहा है।

वैसे ही एक हमारे आदरणीय सांसद श्रीमान सी. एल. रुवाला, ये मिज़ोरम के सांसद है, नॉर्थ-ईस्ट… उन्होंने ख्वालाहीलंग गाँव को आदर्श ग्राम के लिए चुना और उन्होंने एक विशेष काम किया।ये गाँव, सुगरकेन, गन्ने के उत्पादन के लिए तथा राज्य में कुर्तायी गुड़ के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। श्रीमान रुवाला जी ने गाँव में 11 मार्च को कुर्तायी कुट Sugarcane Festival शुरू किया।सभी क्षेत्र के लोग उसमें एकजुट हो गये। पुराने सार्वजनिक जीवन के लोग भी आये, वहाँ से निकले हुए सरकारी अधिकारी भी आये और गन्ने के उत्पादन की बिक्री बढ़े उसके लिए एक प्रदर्शनी भी लगाई गयी।गाँव को आर्थिक गतिविधि का केंद्र कैसे बनाया जा सकता है, गाँव के ही उत्पादन का market कैसे किया जा सकता है। आदर्श गाँव के साथ-साथ एक आत्मनिर्भर गाँव बनाने का उनका प्रयास सचमुच में श्रीमान रुवाला जी अभिनन्दन के अधिकारी हैं।

मेरे प्यारे भाइयो-बहनों, मन की बात हो और स्वच्छता की बात न आये ऐसा कैसे हो सकता है। मुझे मुंबई से सविता राय ने एक टेलीफ़ोन के द्वारा सन्देश भेजा है “दिवाली की तैयारी के लिए हर साल हम अपने घरों को साफ़ करते हैं। इस दिवाली को हम अपने घरों के साथ-साथ अपने बाहर के वातावरण को भी स्वच्छ बनायें और उसे दिवाली के बाद भी स्वच्छ बनाये रखें।” उन्होंने सही बात पर ध्यान आकर्षित किया है। मैं आपको याद कराना चाहता हूँ मेरे प्यारे देशवासियो, गत वर्ष दिवाली के त्योहार के बाद हमारे देश के विशेष करके मीडिया ने एक बड़ी मुहिम चलायी और दिवाली के बाद जहाँ-जहाँ पटाखे पड़े थे वो सारी चीजें दिखाईं और उन्होंने कहा कि ये ठीक नहीं है।एक जागृति का अभियान चला लिया था सभी मीडिया वालों ने। और उसका परिणाम ये आया कि दिवाली के तुरंत बाद एक सफ़ाई का अभियान चल पड़ा था, अपने आप चल पड़ा था।तो आपकी बात सही है कि हम त्योहार के पहले जितनी चिंता करते हैं त्योहार के बाद भी करनी चाहिये।हर सार्वजनिक कार्यक्रम में करनी चाहिए। और मैं आज विशेष रूप से हिन्दुस्तान के सारे मीडिया जगत को अभिनन्दन करना चाहता हूँ। गत 2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी जी की जन्म-जयंती पर और स्वच्छ-भारत अभियान के एक साल पर मुझे इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा ‘सफ़ाईगिरी सम्मलेन’ में शरीक़ होने का सौभाग्य मिला। उन्होंने Clean India Awards दिए और मैं भी देख रहा था कितने प्रकार की गतिविधि चल रही है। कैसे-कैसे लोग इसके लिए अपने आप को ‘वन लाइक वन मिशन’ की तरह काम कर रहे हैं। हमारे देश में कैसे-कैसे स्थान हैं जो इतना स्वच्छ रखे गये हैं।ये सारी बातें उजागर हुईं और मैंने उस समय इंडिया टी.वी. ग्रुप के उस सराहनीय काम को ह्रदय से बधाई दी थी। वैसे जब से स्वच्छता अभियान का मिशन चला है मैंने देखा है कि आंध्र, तेलंगाना से ETV Eenadu और ख़ास करके श्रीमान रामुजी राव उनकी आयु तो बहुत है लेकिन उनका जो उत्साह है वो किसी नौजवान से भी कम नहीं है। और उन्होंने स्वच्छता को अपना एक पर्सनल प्रोग्राम बना दिया है, मिशन बना दिया है। ETV के माध्यम से लगातार पिछले एक साल से उस स्वच्छता के काम को promote कर रहे हैं, उनके अखबारों में उसकी ख़बरें रहती हैं और सकारात्मक ख़बरों पर ही वो बल दे रहे हैं स्वच्छता के संबंध में। और उन्होंने क़रीब-क़रीब 55-56 हज़ार स्कूलों के लगभग 51 लाख बच्चों को आंध्र और तेलंगाना के अन्दर इस काम में जोड़ा।सार्वजनिक स्थल हो, स्टेशन हो, धार्मिक स्थान हो, हॉस्पिटल हो, पार्क हो, कई जगह पर स्वच्छता का बड़ा अभियान चलाया।अब ये ख़बरें अपने आप में स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने की ताकत के दर्शन देती है।

ABP News ने ‘ये भारत देश है मेरा’ नाम से प्रोग्राम शुरू किया और उन्होंने लोगों में सफ़ाई के प्रति कैसी जागरूकता आई है इसको highlight कर के देशवासियों को प्रशिक्षित करने का काम किया। NDTV ने ‘बनेगा स्वच्छ इंडिया’ नाम से मुहिम चलायी। दैनिक जागरण, उन्होंने भी लगातार इस अभियान को आगे बढ़ाया है।ज़ी परिवार ने India TV का ‘मिशन क्लीन इंडिया’। हमारे देश के सैकड़ों चैनल हैं, हजारों अख़बार हैं। हर एक ने, मैं सब के नाम नहीं ले पा रहा हूँ समय के अभाव से, लेकिन इस अभियान को चलाया है।और इसलिए सविता राय जी आपने जो सुझाव दिया है आज पूरा देश इस काम को अपना मान रहा है और उसे आगे बढ़ा रहा है। मेघालय से, वहाँ के हमारे राज्यपाल श्रीमान शंमुगनाथन, उन्होंने मुझे एक चिट्टी लिखी है और चिट्टी लिख कर के मुझे मेघालय के मावल्यन्न्नोंग गाँव का ज़िक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि पिछले कई वर्षों से इस गाँव ने स्वच्छता का एक बीड़ा उठा करके रखा हुआ है। और क़रीब-क़रीब हर पीढ़ी इस स्वच्छता के विषय में पूरी तरह समर्पित है। और कहते हैं कि आज से कुछ वर्ष पहले उनको एशिया के ‘Cleanest Village’ के रूप में अवार्ड मिला था। ये सुन करके मुझे ख़ुशी हुई कि हमारे देश में दूर-सुदूर नॉर्थ-ईस्ट में, मेघालय में भी कोई गाँव है जो सफ़ाई के क्षेत्र में कई वर्षों से लगा हुआ है।वहाँ के नागरिकों का ये स्वाभाव बन गया है, गाँव का ये संस्कार बन गया है।यही तो है, हम सब को विश्वास पैदा करता है कि हमारा देश ज़रूर स्वच्छ होगा।देशवासियों के प्रयत्नों से होगा और 2019 में जब हम महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती मनाएँगे तब हम सीना तान करके गौरव से सवा सौ करोड़ देशवासी कह पाएँगे, देखिये हमने हमारी भारत माता को गंदगी से मुक्त कर दिया।

मेरे प्यारे देशवासियो, मैंने 15 अगस्त को लाल किले से ये कहा था कि कुछ बातें हैं जहाँ भ्रष्टाचार घर कर गया है।ग़रीब व्यक्ति जब छोटी-छोटी नौकरी के लिए जाता है, किसी की सिफ़ारिश के लिए पता नहीं क्या-क्या उसको कष्ट झेलने पड़ते हैं और दलालों की टोली कैसे-कैसे उनसे रूपये हड़प लेती है।नौकरी मिले तो भी रुपये जाते हैं, नौकरी न मिले तो भी रुपये जाते हैं।सारी ख़बरें हम सुनते थे।और उसी में से मेरे मन में एक विचार आया था कि छोटी-छोटी नौकरियों के लिए interview की क्या ज़रूरत है।मैंने तो कभी सुना नहीं है कि दुनिया में कोई ऐसा मनोवैज्ञानिक है जो एक मिनट, दो मिनट के interview में किसी व्यक्ति को पूरी तरह जाँच लेता है।और इसी विचार से मैंने घोषणा की थी कि क्यों न हम ये छोटी पायरी की नौकरियाँ है, वहाँ पर, interview की परम्परा ख़त्म करें।

मेरे प्यारे युवा मित्रो, मैं आज गर्व से कहना चाहता हूँ कि सरकार ने सारी प्रक्रिया पूर्ण कर ली और केंद्र सरकार के ग्रुप ‘डी’, ग्रुप ‘सी’ और ग्रुप ‘बी’ के Non-Gazetted पदों में अब भर्ती के लिए साक्षात्कार नहीं होगा, interview नहीं होगाI 1 जनवरी, 2016 ये लागू हो जायेगाI अभी जहाँ प्रक्रिया चल रही है उसमें कोई रुकावट हम नहीं करेंगे, लेकिन, 1 जनवरी, 2016 से ये लागू हो जायेगा।तो सभी युवा मित्रों को मेरी शुभकामना हैI

वैसे ही, पिछले बज़ट में हमने एक महत्वपूर्ण योजना घोषित की थी। हमारे देश में सोना एक प्रकार से सामाजिक जीवन का हिस्सा बन गया है। गोल्ड आर्थिक सुरक्षा का माध्यम माना गया है। संकट समय की चाबी गोल्ड माना गया है। अब ये समाज-जीवन में सदियों से आ रही परंपरा है। सोने का प्यार, मैं नहीं मानता हूँ उसको कोई कम कर सकता है। लेकिन, सोने को dead-money के रूप में पड़े रखना ये तो आज के युग में शोभा नहीं देता है। सोना शक्ति बन सकता है। सोना आर्थिक शक्ति बन सकता है। सोना देश की आर्थिक संपत्ति बन सकता है।और हर भारतवासी को इसमें योगदान देना चाहिए। आज मुझे खुशी है कि बजट में जो हमने वायदा किया था, इस दीवाली के त्योहार में और जबकि धनतेरस और लोग उस दिन खासरूप से सोना खरीदते हैं, तो, उसके पूर्व ही हम महत्वपूर्ण योजनाओं को लॉन्च करने जा रहे हैं। ‘Gold Monetisation Scheme’ हम लाए हैं। इसके अंतर्गत आप अपना गोल्ड बैंक में जमा कर सकते हैं और बैंक उस पर आपको ब्याज देगी जैसे कि आप अपने पैसे जमा करें और ब्याज मिलता है। पहले गोल्ड लॉकर में रखते थे और लॉकर का किराया हमें देना पड़ता था। अब गोल्ड बैंक में रखेंगे और पैसा बैंक आपको ब्याज के रूप में देगा। कहिये देशवासियो अब सोना संपत्ति बन सकता है कि नहीं बन सकता है? सोना Dead-Money से एक जीवंत ताकत के रूप में परिवर्तित हो सकता है कि नहीं हो सकता है? बस… यही तो काम हमें करना है आप मेरा साथ दीजिये। अब घर में गोल्ड मत रखिए। उसकी सुरक्षा और उसका ब्याज दो-दो फायदे। ज़रूर लाभ उठाइये। दूसरी एक बात है Sovereign gold Bonds में आप के हाथ में सोने की लगड़ी तो नहीं आती है। एक कागज़ आता है, लेकिन उस कागज़ का मूल्य उतना ही है, जितना कि सोने का है। और जिस दिन वो आप काग़ज वापस करोगे, वापिस करने के दिन सोने का जितना मूल्य होगा, उतना ही पैसा आपको वापिस दिया जायेगा। यानि मान लीजिये आज आपने 1000 रूपये के सोने के दाम के हिसाब से ये स्वर्णिम बांड लिया और पांच साल के बाद आप बांड वापिस करने गए और उस समय सोने का दाम ढाई हज़ार रूपये है। तो उस काग़ज के बदले में आपको ढाई हज़ार रूपये मिलेंगे। तो ये इसका हम प्रारंभ कर रहे हैं। इसके कारण अब हमें सोना खरीदने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। सोना संभालने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। सोना कहाँ रखें उसकी चिंता हट जाएगी, और काग़ज को तो चोरी करने कोई आएगा भी नहीं। तो मैं सुरक्षा की गारंटी वाली ये स्कीम आने वाले हफ़्ते में ज़रूर देशवासियों के सामने रखूँगा। मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि हम ‘गोल्ड क्वाईन’ भी ला रहे हैं। अशोक चक्र वाला Gold Coin. आज़ादी को करीब-करीब 70 साल हुए, लेकिन अब तक हम Foreign Gold Coin का ही उपयोग करते रहे हैं या Gold Bullion Bars ये भी विदेशी उपयोग करते रहे हैं। हमारे देश का स्वदेशी मार्का क्यों नहीं होना चाहिए और इसीलिए आने वाले वाले हफ्ते में और धनतेरस के पूर्व जो धनतेरस से सामान्य नागरिकों को उपलब्ध हो जाएगा। पांच ग्राम और दस ग्राम का अशोक चक्र वाला भारतीय सोने का सिक्का शुरू किया जा रहा है। इसके साथ ही बीस ग्राम का Gold Gunion भी लोगों के लिए उपलब्ध होगा। मुझे विश्वास है कि नई स्कीम एक आर्थिक विकास की दिशा में नया परिवर्तन लाएगी और मुझे आपका सहयोग मिलेगा।

मेरे प्यारे देशवासियो 31 अक्टूबर को लौह-पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जन्म-जयंती है। “एक भारत श्रेष्ठ भारत”। सरदार वल्लभ भाई पटेल को याद करते ही पूरा भारत का मानचित्र सामने आता है। भारत की एकता के लिए इस महापुरुष ने बहुत बड़ा योगदान किया है। लौह-पुरुष के रूप में अपने सामर्थ्य का परिचय दिलाया है। सरदार साहब को तो हम श्रद्धांजलि देंगे ही देंगे, लेकिन भारत को एक करने का उनका जो सपना था। भौगोलिक रूप से उन्होंने कर के दिखाया, लेकिन एकता का मंत्र ये निरंतर हमारे चिंतन का, व्यवहार का, अभिव्यक्ति का, माध्यम होना चाहिए। भारत विविधताओं से भरा हुआ है। अनेक पंथ, अनेक संप्रदाय, अनेक बोली, अनेक जाति, अनेक परिवेश, कितनी विविधताओं से भरा हुआ अपना भारत देश और ये विविधता ही तो है, जिसके कारण हमारी शोभा है। ये विविधता न होती तो शायद जिस शोभा के लिए हम गर्व करते हैं वो नहीं कर पाते। और इसलिये, विविधता ही एकता का मंत्र है।शान्ति, सद्भावना, एकता यही तो विकास की जड़ी-बूटी हैं। पिछले कई वर्षों से 31 अक्टूबर को देश के कई कोने में ‘Run for Unity’ के कार्यक्रम होते हैं। “एकता की दौड़”। मुझे भी पहले उसमें शरीक होने का सौभाग्य मिला है। मैंने सुना है इस बार भी चारों तरफ इसकी योजनाएँ बन रही हैं, लोग उत्साह से “एकता की दौड़” की तैयारी कर रहे हैं। “एकता की दौड़” ही सच्चे अर्थ में विकास की दौड़ है। दूसरे अर्थ में कहूँ तो विकास की दौड़ की गारंटी भी एकता की दौड़ है। आइये, सरदार साहब को श्रद्धांजलि दें। एकता के मंत्र को आगे बढ़ाएँ।

प्यारे भाई-बहनों, अब तो आप सब लोग दीवाली की तैयारियों में लगे होंगे, घर में सफाई होती होंगी। नई चीज़ें खरीदी जाती होंगी। दीपावाली का पर्व हमारे देश के हर कोने में अलग-अलग रूप से मनाया जाता है। दीपावली के पावन पर्व के लिए मैं आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। लेकिन, दीवाली के दिनों में कुछ हादसे भी ध्यान में आते हैं। पटाखे फोड़ने के कारण या दीप के कारण आगजनी होती है। पटाखों के कारण बच्चों को बहुत नुकसान हो जाता है। मैं हर माँ-बाप से कहूँगा कि दीपावली का आनंद तो मनाएँ लेकिन ऐसा कोई अकस्मात् न हो जाये, हमारे परिवार की संतान का कोई नुकसान न हो जाये। आप ज़रूर इसकी भी चिंता करेंगे और सफाई तो करनी ही करनी है।

मेरे प्यारे देशवासियो, दीपावली के दूसरे दिन मुझे ब्रिटेन की यात्रा पर जाना है। मैं इस बार ब्रिटेन की मेरी यात्रा के लिए बहुत रोमांचित हूँ। और उसका एक विशेष कारण है।कुछ सप्ताह पूर्व मैं मुंबई में बाबा साहेब अम्बेडकर के ‘चैत्य-भूमि’ के पास एक भव्य स्मारक का शिलान्यास करने गया था और अब मैं लंदन में, जहाँ डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर रहते थे वो घर अब भारत की संपत्ति बन गया है, सवा-सौ करोड़ देशवासियों का प्रेरणा स्थान बन गया है, उसको विधिवत रूप से उदघाटन करने के लिए जा रहा हूँ। दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, पिछड़े हो, कठिनाइयों से जिंदगी गुजारा करने वाले किसी भी भारतीय के लिए बाबा साहेब अम्बेडकर का ये भवन इस बात की प्रेरणा देता है कि अगर इच्छा-शक्ति प्रबल हो तो संकटों को पार करके भी अपने जीवन को आगे बढ़ाया जा सकता है, शिक्षा प्राप्त की जा सकती है और यही जगह है, जिस जगह पर बैठ के बाबा साहेब अम्बेडकर ने तपस्या की थी। भारत सरकार भी और राज्य सरकारें भी समाज के इस प्रकार के वर्गों को दलित हो, आदिवासी हो, पिछड़े हो, ऐसे होनहार बच्चों को स्कालरशिप देती है जो विदेश पढ़ने जाते हैं। भारत सरकार भी होनहार दलित युवक-युवतियों को प्रोत्साहन देती है। मुझे विश्वास है कि जब ब्रिटेन में भारत के ऐसे हमारे बालक पढ़ने जाएँगे तो बाबा साहेब अम्बेडकर का ये स्थान उनके लिए तीर्थ क्षेत्र बन जाएगा, प्रेरणा भूमि बन जाएगा और जीवन में कुछ सीखना लेकिन बाद में देश के लिए जीना, यही सन्देश तो बाबा साहेब अम्बेडकर ने दिया, जी कर के दिया। और इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि मेरी ब्रिटेन की यात्रा में, मैं विशेष रोमांचित हूँ, कई वर्षों से विषय उलझा पड़ा था और अब वो भवन सवा-सौ करोड़ देशवासियों की संपत्ति बनता हो, बाबा साहेब अम्बेडकर का नाम जुड़ा हो तो मेरे जैसे लोगों को कितना आनंद होगा, इसका आप अंदाज लगा सकते हैं। मुझे लंदन में एक और अवसर भी मिलने वाला है, भगवान विश्वेश्वर की प्रतिमा का अनावरण।अनेक वर्षों पहले भगवान विश्वेश्वर ने लोकतंत्र के लिए, empowerment of women के लिए जो काम किये थे वो दुनिया का एक सचमुच में अध्ययन करने वाला पहलू है। लंदन की धरती पर भगवान विश्वेश्वर की प्रतिमा का लोकार्पण ये अपने आप में सदियों पहले भारत के महापुरुष कैसा सोचते थे कितना लम्बा सोचते थे उसका एक उत्तम उदहारण है। तो आप जानते हैं कि जब ऐसी घटनाएँ जुड़ी हों तो हम सभी देशवासियों का मन रोमांचित हो उठता है I

मेरे प्यारे देशवासियों “मन की बात” के साथ आप जुड़े रहते हैं। टेलीफोन के द्वारा, MyGov.in के द्वारा आपके सुझाव मुझे मिलते रहते हैं। आपके पत्रों की बात में आकाशवाणी पर चर्चा भी होती है। सरकारी अधिकारियों को बुलाकर के चर्चा होती है। कुछ लोग अपनी समस्याएँ लिखते हैं, समस्याओं का समाधान करने का भी प्रयास होता है। भारत जैसे देश में हमें अनेक भाषाओं को सीखना चाहिये। कुछ भाषाएं तो मुझे सीखने का सौभाग्य मिला है लेकिन फिर भी इतनी भाषाएं हैं कि मैं कहां सीख पाया?नहीं। लेकिन फिर भी मैं आकाशवाणी का आभारी हूँ कि इस “मन की बात” को रात को 8 बजे हरेक राज्य की प्रादेशिक भाषा में वो प्रसारित करते हैं। भले ही वो आवाज़ किसी और की हो, लेकिन बात तो मेरे मन की होती है। आपकी भाषा में आप तक पहुँचने का भी रात को 8 बजे ज़रूर प्रयास करूँगा। तो एक अच्छा हम लोगों का नाता जुड़ गया है। पिछले समय मैं एक वर्ष पूर्ण कर रहा था आज हम नए वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। मेरे प्यारे देशवासियों को एक बार फिर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

जय हिंद।

मोदी के मन की बात: पहला एपिसोड (3 अक्टूबर 2014)

mann ki baat

मेरे प्यारे देशवासियों,

आज विजयदशमी का पावन पर्व है। आप सबको विजयदशमी की अनेक- अनेक शुभकामनाएं।

मैं आज रेडियो के माध्यम से आपसे कुछ मन की बातें बताना चाहता हूं और मेरे मन में तो ऐसा है कि सिर्फ आज नहीं कि बातचीत का अपना क्रम आगे भी चलता रहे। मैं कोशिश करूंगा, हो सके तो महीने में दो बार या तो महीने में एक बार समय निकाल कर के आपसे बाते करूं। आगे चलकर के मैंने मन में यह भी सोचा है कि जब भी बात करूंगा तो रविवार होगा और समय प्रात: 11 बजे का होगा तो आपको भी सुविधा रहेगी और मुझे भी ये संतोष होगा कि मैं मेरे मन की बात आपके मन तक पहुंचाने में सफल हुआ हूं।

आज जो विजयदशमी का पर्व मनाते हैं ये विजयदशमी का पर्व बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का पर्व है। लेकिन एक श्रीमान गणेश वेंकटादरी मुंबई के सज्जन, उन्हों ने मुझे एक मेल भेजा,  उन्होंने कहा कि विजयदशमी में हम अपने भीतर की दस बुराइयों को खत्म करने का संकल्प करें। मैं उनके इस सुझाव के लिए उनका आभार व्यक्त करता हूं। हर कोई जरूर सोचता होगा अपने-अपने भीतर की जितनी ज्यादा बुराइयों को पराजय करके विजय प्राप्त करे, लेकिन राष्ट्र  के रूप में मुझे लगता है कि आओ विजयदशमी के पावन पर्व पर हम सब गंदगी से मुक्ति का संकल्प करें और गंदगी को खत्म  कर कर के विजय प्राप्त करना विजयदशमी के पर्व पर हम ये संकल्प कर सकते हैं।

कल 2 अक्टूबर पर महात्मा गांधी की जन्म जयंती पर “स्वच्छ‍भारत” का अभियान सवा सौ करोड़ देशवासियों ने आरंभ किया है। मुझे विश्वास है कि आप सब इसको आगे बढ़ाएंगे। मैंने कल एक बात कही थी “स्वच्छ  भारत अभियान” में कि मैं नौ लोगों को निमंत्रित करूंगा और वे खुद सफाई करते हुए अपने वीडियो को सोशल मीडिया में अपलोड करेंगे और वे ‘और’ नौ लोगों को निमंत्रित करेंगे। आप भी इसमें जुडि़ए, आप सफाई कीजिए, आप जिन नौ लोगों का आह्वान करना चाहते हैं, उनको कीजिए, वे भी सफाई करें, आपके साथी मित्रों को कहिए, बहुत ऊपर जाने की जरूरत नहीं, और नौ लोगों को कहें, फिर वो और नौ लोगों को कहें, धीरे-धीरे पूरे देश में ये माहौल बन जाएगा। मैं विश्वास करता हूं कि इस काम को आप आगे बढ़ायेंगे।

हम जब महात्मा गांधी की बात करते हैं, तो खादी की बात बहुत स्वाभाविक ध्यान में आती है। आपके परिवार में अनेक प्रकार के वस्त्र  होंगे, अनेक प्रकार के वस्त्र होंगे, अनेक प्रकार के  फैब्रिक्स होंगे, अनेक कंपनियों के productsहोंगे, क्या उसमें एक खादी का नहीं हो सकता क्या,  मैं अपको खादीधारी बनने के लिए नहीं कह रहा, आप पूर्ण खादीधारी होने का व्रत करें, ये भी नहीं कह रहा। मैं सिर्फ इतना कहता हूं कि कम से कम एक चीज, भले ही वह हैंडकरचीफ,  भले घर में नहाने का तौलिया हो, भले हो सकता है बैडशीट हो, तकिए का कबर हो, पर्दा हो, कुछ तो भी हो, अगर परिवार में हर प्रकार के फैब्रिक्स का शौक है,  हर प्रकार के कपड़ों का शौक है, तो ये नियमित होना चाहिए और ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि अगर आप खादी का वस्त्र खरीदते हैं तो एक गरीब के घर में दीवाली का दीया जलता है और इसीलिए एकाध चीज … और इन दिनों तो 2 अक्टूबर से लेकर करीब महीने भर खादी के बाजार में स्पेशल डिस्काउंट होता है, उसका फायदा भी उठा सकते हैं। एक छोटी चीज…… और आग्रहपूर्वक इसको करिए और आप देखिए गरीब के साथ आपका कैसा जुड़ाव आता है। उस पर आपको कैसी सफलता मिलती है। मैं जब कहता हूं सवा सौ करोड़ देशवासी अब तक क्या हुआ है…. हमको लगता है सब कुछ सरकार करेगी और हम कहां रह गए,  हमने देखा है …. अगर आगे बढ़ना है तो सवा सौ करोड़ देशवासियों को…करना पड़ेगा ….. हमें खुद को पहचानना पड़ेगा, अपनी शक्ति को जानना पड़ेगा और मैं सच बताता हूं हम विश्व में अजोड़ लोग हैं। आप जानते हैं हमारे ही वैज्ञानिकों ने कम से कम खर्च में मार्स पहुंचने का सफल प्रयोग, सफलता पूर्वक पर कर दिया। हमारी ताकत में कमी नहीं है, सिर्फ हम  अपनी शक्ति को भूल चुके हैं। अपने आपको भूल चुके हैं। हम जैसे निराश्रित बन गए हैं.. नहीं मेरे प्यारे भइयों बहनों ऐसा नहीं हो सकता। मूझे स्वामी विवेकानन्द जी जो एक बात कहते थे, वो बराबर याद आती है। स्वामी वि‍वेकानन्द  अक्सर एक बात हमेशा बताया करते थे। शायद ये बात उन्होंने कई बार लोगों को सुनाई होगी।

विवेकानन्द जी कहते थे कि एक बार एक शेरनी अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को ले कर के रास्ते से गुजर रही थी। दूर से उसने भेड़ का झुंड देखा,  तो शिकार करने का मन कर गया,  तो शेरनी उस तरफ दौड़ पड़ी और उसके साथ उसका एक बच्चा भी दौड़ने लगा। उसका दूसरा बच्चा  पीछे छूट गया और शेरनी भेड़ का शिकार करती हुई आगे बढ़ गई। एक बच्चा भी चला गया, लेकिन एक बच्चा बिछड़ गया, जो बच्चा बिछड़ गया उसको एक माता भेड़ ने उसको पाला-पोसा बड़ा किया और वो शेर भेड़ के बीच में ही बड़ा होने लगा। उसकी बोलचाल, आदतें सारी भेड़ की जैसी हो गईं। उसका हंसना खेलना,  बैठना,  सब भेड़ के साथ ही हो गया। एक बार, वो जो शेरनी के साथ बच्चा चला गया था, वो अब बड़ा हो गया था। उसने उसको एक बार देखा ये क्या बात है। ये तो शेर है और भेड़ के साथ खेल रहा है। भेड़ की तरह बोल रहा है। क्या‍हो गया है इसको। तो शेर को थोड़ा अपना अहम पर ही संकट आ गया। वो इसके पास गया। वो कहने लगा अरे तुम क्या कर रहे हो। तुम तो शेर हो। कहता- नहीं, मैं तो भेड़ हूं। मैं तो इन्हीं के बीच पला-बढ़ा हूं। उन्होंने मुझे बड़ा किया है। मेरी आवाज देखिए, मेरी बातचीत का तरीका देखिए। तो शेर ने कहा कि चलो मैं दिखाता हूं तुम कौन हो। उसको एक कुएं के पास ले गया और कुएं में पानी के अंदर उसका चेहरा दिखाया और खुद के चेहरे के साथ उसको कहा- देखो, हम दोनों का चेहरा एक है। मैं भी शेर हूं, तुम भी शेर हो और जैसे ही उसके भीतर से आत्मसम्मान जगा, उसकी अपनी पहचान हुई तो वो भी उस शेर की तरह,  भेड़ों के बीच पला शेर भी दहाड़ने लगा। उसके भीतर का सत्व जग गया। स्वामी विवेकानंद जी यही कहते थे। मेरे देशवासियों, सवा सौ करोड़ देशवासियों के भीतर अपार शक्ति है, अपार सामर्थ्य है। हमें अपने आपको पहचानने की जरूरत है। हमारे भीतर की ताकत को पहचानने की जरूरत है और फिर जैसा स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था उस आत्म-सम्मान को ले करके, अपनी सही पहचान को ले करके हम चल पड़ेंगे, तो विजयी होंगे और हमारा राष्ट्र भी विजयी होगा, सफल होगा। मुझे लगता है हमारे सवा सौ करोड़ देशवासी भी सामर्थ्यवान हैं, शक्तिवान हैं और हम भी बहुत विश्वास के साथ खड़े हो सकते हैं।

इन दिनों मुझे ई-मेल के द्वारा सोशल मीडिया के द्वारा, फेस-बुक के द्वारा कई मित्र मुझे चिट्ठी लिखते हैं। एक गौतम पाल करके व्यक्ति ने एक चिंता जताई है, उसने कहा है कि जो स्पैशली एबल्ड चाईल्ड होते हैं, उन बालकों के लिए नगरपालिका हो, महानगरपालिका, पंचायत हो, उसमें कोई न कोई विशेष योजनाएं होती रहनी चाहिएं। उनका हौसला बुलन्द करना चाहिए। मुझे उनका ये सुझाव अच्छा लगा क्यों कि मेरा अपना अनुभव है कि जब मैं गुजरात में मुख्यामंत्री था तो 2011 में एथेन्स में जो स्पेशल ओलम्पिक होता है, उसमें जब गुजरात के बच्चे गये और विजयी होकर आये तो मैंने उन सब बच्चों  को, स्पेशली एबल्ड बच्चों  को मैंने घर बुलाया। मैंने दो घंटे उनके साथ बिताये, शायद वो मेरे जीवन का बहुत ही इमोशनल,  बड़ा प्रेरक, वो घटना थी। क्योंकि मैं मानता हूं कि किसी परिवार में स्पेशली एबल्ड बालक है तो सिर्फ उनके मां-बाप का दायित्व नहीं है। ये पूरे समाज का दायित्व है। परमात्मा ने शायद उस परिवार को पसंद किया है, लेकिन वो बालक तो सारे राष्ट्र् की जिम्मेसदारी होता है। बाद में इतना मैं इमोशनली टच हो गया था कि मैं गुजरात में स्पे‍शली एबल्ड  बच्चों  के लिए अलग ओलम्पिक करता था। हजारों बालक आते थे, उनके मां-बाप आते थे। मैं खुद जाता था। ऐसा एक विश्वास का वातावरण पैदा होता था और इसलिए मैं गौतम पाल के सुझाव, जो उन्होंने दिया है,  इसके लिये मैं, मुझे अच्छा लगा और मेरा मन कर गया कि मैं मुझे जो ये सुझाव आया है मैं आपके साथ शेयर करूं।

pm modi in mann ki baat

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एक कथा मुझे और भी ध्यान आती है। एक बार एक राहगीर रास्ते के किनारे पर बैठा था और आते-आते सबको पूछ रहा था मुझे वहाँ पहुंचना है, रास्ता  कहा है। पहले को पूछा, दूसरे को पूछा, चौथे को पूछा। सबको पूछता ही रहता था और उसके बगल में एक सज्जन बेठे थे। वो सारा देख रहे थे। बाद में खड़ा हुआ। खड़ा होकर किसी को पूछने लगा, तो वो सज्जन खड़े हो करके उनके पास आये। उसने कहा – देखो भाई, तुमको जहां जाना है न, उसका रास्ता इस तरफ से जाता है। तो उस राहगीर ने उसको पूछा कि भाई साहब आप इतनी देर से मेरे बगल में बेठे हो, मैं इतने लोगों को रास्ता पूछ रहा हूं,  कोई मुझे बता नहीं रहा है। आपको पता था तो आप क्यों  नहीं बताते थे। बोले, मुझे भरोसा नहीं था कि तुम सचमुच में चलकर के जाना चाहते हो या नहीं चाहते हो। या ऐसे ही जानकारी के लिए पूछते रहते हो। लेकिन जब तुम खड़े हो गये तो मेरा मन कर गया कि हां अब तो इस आदमी को जाना है, पक्का  लगता है। तब जा करके मुझे लगा कि मुझे आपको रास्ता दिखाना चाहिए।

मेरे देशवासियों, जब तक हम चलने का संकल्प  नहीं करते, हम खुद खड़े नहीं होते, तब रास्ता दिखाने वाले भी नहीं मिलेंगे। हमें उंगली पकड़ कर चलाने वाले नहीं मिलेंगे। चलने की शुरूआत हमें करनी पड़ेगी और मुझे विशवास है कि सवा सौ करोड़ जरूर चलने के लिए सामर्थ्यवान है, चलते रहेंगे।

कुछ दिनों से मेरे पास जो अनेक सुझाव आते हैं,  बड़े इण्टरेस्टिंग सुझाव लोग भेजते हैं। मैं जानता हूं कब कैसे कर पायेंगे, लेकिन मैं इन सुझावों के लिए भी एक सक्रियता जो है न,  देश हम सबका है,  सरकार का देश थोड़े न है। नागरिकों का देश है। नागरिकों का जुड़ना बहुत जरूरी है। मुझे कुछ लोगों ने कहा है कि जब वो लघु उद्योग शुरू करते हैं तो उसकी पंजीकरण जो प्रक्रिया है वो आसान होनी चाहिए। मैं जरूर सरकार को उसके लिए सूचित करूंगा। कुछ लोगों ने मुझे लिख करके भेजा है – बच्चों को पांचवीं कक्षा से ही स्किल डेवलेपमेंट सिखाना चाहिए। ताकि वो पढ़ते ही पढ़ते ही कोई न कोई अपना हुनर सीख लें, कारीगरी सीख लें। बहुत ही अच्छा सुझाव उन्होंने दिया है। उन्होंहने ये भी कहा है कि युवकों को भी स्किल डेवलेपमेंट होना चाहिए उनकी पढ़ाई के अंदर। किसी ने मुझे लिखा है कि हर सौ मीटर के अंदर डस्ट बीन होना चाहिए, सफाई की व्यनवस्था  करनी है तो।

कुछ लोगों ने मुझे लिख करके भेजा है कि पॉलीथिन के पैक पर प्रतिबंध लगना चाहिए। ढेर सारे सुझाव लोग मुझे भेज रहे हैं। मैं आगे से ही आपको कहता हूं अगर आप मुझे कहीं पर भी कोई सत्य घटना भेजेंगे,  जो सकारात्मक हो, जो मुझे भी प्रेरणा दे,  देशवासियों को प्रेरणा दे, अगर ऐसी सत्य घटनाएं सबूत के साथ मुझे भेजोगे तो मैं जरूर जब मन की बात करूंगा, जो चीज मेरे मन को छू गयी है वो बातें मैं जरूर देशवासियों तक पहुंचाऊंगा।

ये सारा मेरा बातचीत करने का इरादा एक ही है – आओ, हम सब मिल करके अपनी भारत माता की सेवा करें। हम देश को नयी ऊंचाइयों पर ले जायें। हर कोई एक कदम चले, अगर आप एक कदम चलते हैं, देश सवा सौ करोड़ कदम आगे चला जाता है और इसी काम के लिए आज विजयदशमी के पावन पर्व पर अपने भीतर की सभी बुराइयों को परास्त करके विजयी होने के संकल्पर के साथ, कुछ अच्छा करने का निर्णय करने के साथ हम सब प्रारंभ करें। आज मेरी शुभ शुरूआत है। जैसा जैसा मन में आता जायेगा, भविष्य में जरूर आपसे बातें करता रहूंगा। आज जो बातें मेरे मन में आईं वो बातें मैंने आपको कही है। फिर जब मिलूंगा, रविवार को मिलूंगा। सुबह 11 बजे मिलूंगा लेकिन मुझे विश्वास है कि हमारी यात्रा बनी रहेगी, आपका प्यार बना रहेगा।

आप भी मेरी बात सुनने के बाद अगर मुझे कुछ कहना चाहते हैं,  जरूर मुझें पहुंचा दीजिये, मुझे अच्छा  लगेगा। मुझे बहुत अच्छा  लगा आज आप सबसे बातें कर के‍और रेडियो का….ऐसा सरल माध्यम है कि मैं दूर-दूर तक पहुंच पाऊंगा। गरीब से गरीब घर तक पहुंच जाऊंगा,  क्योंकि मेरा,  मेरे देश की ताकत गरीब की झोंपडी में है,  मेरे देश की ताकत गांव में है, मेरे देश की ताकत माताओं,  बहनों, नौजवानों में है, मेरी देश की ताकत किसानों में है। आपके भरोसे से ही देश आगे बढ़ेगा। मैं विश्वास व्यक्त  करता हूं। आपकी शक्ति में भरोसा है इसलिए मुझे भारत के भविष्य में भरोसा है।

मैं एक बार आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं। आपने समय निकाला। फिर एक बार बहुत-बहुत धन्यववाद!

वीडियो प्ले कर सुनें मोदी के मन की पहली बात

मोदी के मन की बात-बारहवां एपिसोड (20 सितंबर 2015)

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मेरे प्यारे देशवासियो, आप सबको नमस्कार! ‘मन की बात’ का ये बारहवां एपिसोड है और इस हिसाब से देखें तो एक साल बीत गया। पिछले वर्ष, 3 अक्टूबर को पहली बार मुझे ‘मन की बात’ करने का सौभाग्य मिला था। ‘मन की बात’ – एक वर्ष, अनेक बातें। मैं नहीं जानता हूँ कि आपने क्या पाया, लेकिन मैं इतना ज़रूर कह सकता हूँ, मैंने बहुत कुछ पाया।

लोकतंत्र में जन-शक्ति का अपार महत्व है। मेरे जीवन में एक मूलभूत सोच रही है और उसके कारण जन-शक्ति पर मेरा अपार विश्वास रहा है। लेकिन ‘मन की बात’ ने मुझे जो सिखाया, जो समझाया, जो जाना, जो अनुभव किया, उससे मैं कह सकता हूँ कि हम सोचते हैं, उससे भी ज्यादा जन-शक्ति अपरम्पार होती है। हमारे पूर्वज कहा करते थे कि जनता-जनार्दन, ये ईश्वर का ही अंश होता है। मैं ‘मन की बात’ के मेरे अनुभवों से कह सकता हूँ कि हमारे पूर्वजों की सोच में एक बहुत बड़ी शक्ति है, बहुत बड़ी सच्चाई है, क्योंकि मैंने ये अनुभव किया है। ‘मन की बात’ के लिए मैं लोगों से सुझाव माँगता था और शायद हर बार दो या चार सुझावों को ही हाथ लगा पाता था। लेकिन लाखों की तादाद में लोग सक्रिय हो करके मुझे सुझाव देते रहते थे। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी शक्ति है, वर्ना प्रधानमंत्री को सन्देश दिया, mygov.in पर लिख दिया, चिठ्ठी भेज दी, लेकिन एक बार भी हमारा मौका नहीं मिला, तो कोई भी व्यक्ति निराश हो सकता है। लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगा।

हाँ… मुझे इन लाखों पत्रों ने एक बहुत बड़ा पाठ भी पढ़ाया। सरकार की अनेक बारीक़ कठिनाइयों के विषय में मुझे जानकारी मिलती रही और मैं आकाशवाणी का भी अभिनन्दन करता हूँ कि उन्होंने इन सुझावों को सिर्फ एक कागज़ नहीं माना, एक जन-सामान्य की आकांक्षा माना। उन्होंने इसके बाद कार्यक्रम किये। सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों को आकाशवाणी में बुलाया और जनता-जनार्दन ने जो बातें कही थीं, उनके सामने रखीं। कुछ बातों का निराकरण करवाने का प्रयास किया। सरकार के भी हमारे भिन्न-भिन्न विभागों ने, लोगों में इन पत्रों का analysis किया और वो कौन-सी बातें हैं कि जो policy matters हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो person के कारण परेशानी हैं? वो कौन-सी बातें हैं, जो सरकार के ध्यान में ही नहीं हैं? बहुत सी बातें grass-root level से सरकार के पास आने लगीं और ये बात सही है कि governance का एक मूलभूत सिद्धांत है कि जानकारी नीचे से ऊपर की तरफ जानी चाहिए और मार्गदर्शन ऊपर से नीचे की तरफ जाना चाहिये। ये जानकारियों का स्रोत, ‘मन की बात’ बन जाएगा, ये कहाँ सोचा था किसी ने? लेकिन ये हो गया।

और उसी प्रकार से ‘मन की बात’ ने समाज- शक्ति की अभिव्यक्ति का एक अवसर बना दिया। मैंने एक दिन ऐसे ही कह दिया था कि सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और सारी दुनिया अचरज हो गयी, शायद दुनिया के सभी देशों से किसी-न-किसी ने लाखों की तादाद में सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) और बेटी को क्या गरिमा मिल गयी। और जब वो सेल्फ़ी विद डॉटर (selfie w।th daughter) करता था, तब अपनी बेटी का तो हौसला बुलंद करता था, लेकिन अपने भीतर भी एक commitment पैदा करता था। जब लोग देखते थे, उनको भी लगता था कि बेटियों के प्रति उदासीनता अब छोड़नी होगी। एक Silent Revolution था।

भारत के tourism को ध्यान में रखते हुए मैंने ऐसे ही नागरिकों को कहा था, “Incredible India”, कि भई, आप भी तो जाते हो, जो कोई अच्छी तस्वीर हो, तो भेज देना, मैं देखूंगा। यूँ ही हलकी-फुलकी बात की थी, लेकिन क्या बड़ा गज़ब हो गया! लाखों की तादाद में हिन्दुस्तान के हर कोने की ऐसी-ऐसी तस्वीरें लोगों ने भेजीं। शायद भारत सरकार के tourism ने, राज्य सरकार के tourism department ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि हमारे पास ऐसी-ऐसी विरासतें हैं। एक platform पर सब चीज़ें आयीं और सरकार का एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ। लोगों ने काम को बढ़ा दिया।

मुझे ख़ुशी तो तब हुई कि पिछले अक्टूबर महीने के पहले मेरी जो पहली ‘मन की बात’ थी, तो मैंने गाँधी जयंती का उल्लेख किया था और लोगों को ऐसे ही मैंने प्रार्थना की थी कि 2 अक्टूबर महात्मा गाँधी की जयंती हम मना रहे हैं। एक समय था, खादी फॉर नेशन (Khadi for Nation). क्या समय का तकाज़ा नहीं है कि खादी फॉर फैशन (Khadi for Fashion) – और लोगों को मैंने आग्रह किया था कि आप खादी खरीदिये। थोडा बहुत कीजिये। आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूँ कि पिछले एक वर्ष में करीब-करीब खादी की बिक्री डबल हुई है। अब ये कोई सरकारी advertisement से नहीं हुआ है। अरबों-खरबों रूपए खर्च कर के नहीं हुआ है। जन-शक्ति का एक एहसास, एक अनुभूति।

एक बार मैंने ‘मन की बात’ में कहा था, गरीब के घर में चूल्हा जलता है, बच्चे रोते रहते हैं, गरीब माँ – क्या उसे gas cylinder नहीं मिलना चाहिए? और मैंने सम्पन्न लोगों से प्रार्थना की थी कि आप subsidy surrender नहीं कर सकते क्या? सोचिये… और मैं आज बड़े आनंद के साथ कहना चाहता हूँ कि इस देश के तीस लाख परिवारों ने gas cylinder की subsidy छोड़ दी है – और ये अमीर लोग नहीं हैं। एक TV channel पर मैंने देखा था कि एक retired teacher, विधवा महिला, वो क़तार में खड़ी थी subsidy छोड़ने के लिए। समाज के सामान्य जन भी, मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग जिनके लिए subsidy छोड़ना मुश्किल काम है। लेकिन ऐसे लोगों ने छोड़ा। क्या ये Silent Revolution नहीं है? क्या ये जन-शक्ति के दर्शन नहीं हैं?

सरकारों को भी सबक सीखना होगा कि हमारी सरकारी चौखट में जो काम होता है, उस चौखट के बाद एक बहुत बड़ी जन-शक्ति का एक सामर्थ्यवान, ऊर्जावान और संकल्पवान समाज है। सरकारें जितनी समाज से जुड़ करके चलती हैं, उतनी ज्यादा समाज में परिवर्तन के लिए एक अच्छी catalytic agent के रूप में काम कर सकती हैं। ‘मन की बात’ में, मुझे सब जिन चीज़ों में मेरा भरोसा था, लेकिन आज वो विश्वास में पलट गया, श्रद्धा में पलट गया और इसलिये मैं आज ‘मन की बात’ के माध्यम से फिर एक बार जन-शक्ति को शत-शत वन्दन करना चाहता हूँ, नमन करना चाहता हूँ। हर छोटी बात को अपनी बना ली और देश की भलाई के लिए अपने-आप को जोड़ने का प्रयास किया। इससे बड़ा संतोष क्या हो सकता है?

‘मन की बात’ में इस बार मैंने एक नया प्रयोग करने के लिए सोचा। मैंने देश के नागरिकों से प्रार्थना की थी कि आप telephone करके अपने सवाल, अपने सुझाव दर्ज करवाइए, मैं ‘मन की बात’ में उस पर ध्यान दूँगा। मुझे ख़ुशी है कि देश में से करीब पचपन हज़ार से ज़्यादा phone calls आये। चाहे सियाचिन हो, चाहे कच्छ हो या कामरूप हो, चाहे कश्मीर हो या कन्याकुमारी हो। हिन्दुस्तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से लोगों ने phone calls न किये हों। ये अपने-आप में एक सुखद अनुभव है। सभी उम्र के लोगों ने सन्देश दिए हैं। कुछ तो सन्देश मैंने खुद ने सुनना भी पसंद किया, मुझे अच्छा लगा। बाकियों पर मेरी team काम कर रही है। आपने भले एक मिनट-दो मिनट लगाये होंगे, लेकिन मेरे लिए आपका phone call, आपका सन्देश बहुत महत्वपूर्ण है। पूरी सरकार आपके सुझावों पर ज़रूर काम करेगी।

लेकिन एक बात मेरे लिए आश्चर्य की रही और आनंद की रही। वैसे ऐसा लगता है, जैसे चारों तरफ negativity है, नकारात्मकता है। लेकिन मेरा अनुभव अलग रहा। इन पचपन हज़ार लोगों ने अपने तरीके से अपनी बात बतानी थी। बे-रोकटोक था, कुछ भी कह सकते थे, लेकिन मैं हैरान हूँ, सारी बातें ऐसी ही थीं, जैसे ‘मन की बात’ की छाया में हों। पूरी तरह सकारात्मक, सुझावात्मक, सृजनात्मक – यानि देखिये देश का सामान्य नागरिक भी सकारात्मक सोच ले करके चल रहा है, ये तो कितनी बड़ी पूंजी है देश की। शायद 1%, 2% ऐसे फ़ोन हो सकते हैं जिसमें कोई गंभीर प्रकार की शिकायत का माहौल हो। वर्ना 90% से भी ज़्यादा एक ऊर्जा भरने वाली, आनंद देने वाली बातें लोगों ने कही हैं।

एक बात और ध्यान में मेरे आई, ख़ास करके specially abled – उसमें भी ख़ासकर के दृष्टिहीन अपने स्वजन, उनके काफी फ़ोन आये हैं। लेकिन उसका कारण ये होगा, शायद ये TV देख नहीं पाते, ये रेडियो ज़रूर सुनते होंगे। दृष्टिहीन लोगों के लिए रेडियो कितना बड़ा महत्वपूर्ण होगा, वो मुझे इस बात से ध्यान में आया है। एक नया पहलू मैं देख रहा हूँ, और इतनी अच्छी-अच्छी बातें बताई हैं इन लोगों ने और सरकार को भी संवेदनशील बनाने के लिए काफी है।

मुझे अलवर, राजस्थान से पवन आचार्य ने एक सन्देश दिया है, मैं मानता हूँ, पवन आचार्य की बात पूरे देश को सुननी चाहिए और पूरे देश को माननी चाहिए। देखिये, वो क्या कहना चाहते हैं, जरुर सुनिए –

“मेरा नाम पवन आचार्य है और मैं अलवर, राजस्थान से बिलॉन्ग करता हूँ। मेरा मेसेज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी से यह है कि कृपया आप इस बार ‘मन की बात’ में पूरे भारत देश की जनता से आह्वान करें कि दीवाली पर वो अधिक से अधिक मिट्टी के दियों का उपयोग करें। इस से पर्यावरण का तो लाभ होगा ही होगा और हजारों कुम्हार भाइयों को रोज़गार का अवसर मिलेगा। धन्यवाद।”

पवन, मुझे विश्वास है कि पवन की तरह आपकी ये भावना हिन्दुस्तान के हर कोने में जरुर पहुँच जाएगी, फैल जाएगी। अच्छा सुझाव दिया है और मिट्टी का तो कोई मोल ही नहीं होता है, और इसलिए मिट्टी के दिये भी अनमोल होते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से भी उसकी एक अहमियत है और दिया बनता है गरीब के घर में, छोटे-छोटे लोग इस काम से अपना पेट भरते हैं और मैं देशवासियों को जरुर कहता हूँ कि आने वाले त्योहारों में पवन आचार्य की बात अगर हम मानेंगे, तो इसका मतलब है, कि दिया हमारे घर में जलेगा, लेकिन रोशनी गरीब के घर में होगी।

मेरे प्यारे देशवासियो, गणेश चतुर्थी के दिन मुझे सेना के जवानों के साथ दो-तीन घंटे बिताने का अवसर मिला। जल, थल और नभ सुरक्षा करने वाली हमारी जल सेना हो, थल सेना हो या वायु सेना हो – Army, Air Force, Navy. 1965 का जो युद्ध हुआ था पाकिस्तान के साथ, उसको 50 वर्ष पूर्ण हुए, उसके निमित्त दिल्ली में इंडिया गेट के पास एक ‘शौर्यांजलि’ प्रदर्शनी की रचना की है। मैं उसे चाव से देखता रहा, गया था तो आधे घंटे के लिए, लेकिन जब निकला, तब ढाई घंटे हो गए और फिर भी कुछ अधूरा रह गया। क्या कुछ वहाँ नही था? पूरा इतिहास जिन्दा कर के रख दिया है। Aesthetic दृष्टि से देखें, तो भी उत्तम है, इतिहास की दृष्टि से देखें, तो बड़ा educative है और जीवन में प्रेरणा के लिए देखें, तो शायद मातृभूमि की सेवा करने के लिए इस से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है। युद्ध के जिन proud moments और हमारे सेनानियों के अदम्य साहस और बलिदान के बारे में हम सब सुनते रहते थे, उस समय तो उतने photograph भी available नहीं थे, इतनी videography भी नहीं होती थी। इस प्रदर्शनी के माध्यम से उसकी अनुभूति होती है।

लड़ाई हाजीपीर की हो, असल उत्तर की हो, चामिंडा की लड़ाई हो और हाजीपीर पास के जीत के दृश्यों को देखें, तो रोमांच होता है और अपने सेना के जवानों के प्रति गर्व होता है। मुझे इन वीर परिवारों से भी मिलना हुआ, उन बलिदानी परिवारों से मिलना हुआ और युद्ध में जिन लोगों ने हिस्सा लिया था, वे भी अब जीवन के उत्तर काल खंड में हैं। वे भी पहुँचे थे। और जब उन से हाथ मिला रहा था तो लग रहा था कि वाह, क्या ऊर्जा है, एक प्रेरणा देता था। अगर आप इतिहास बनाना चाहते हैं, तो इतिहास की बारीकियों को जानना-समझना ज़रूरी होता है। इतिहास हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। इतिहास से अगर नाता छूट जाता है, तो इतिहास बनाने की संभावनाओं को भी पूर्ण विराम लग जाता है। इस शौर्य प्रदर्शनी के माध्यम से इतिहास की अनुभूति होती है। इतिहास की जानकारी होती है। और नये इतिहास बनाने की प्रेरणा के बीज भी बोये जा सकते हैं। मैं आपको, आपके परिवारजनों को – अगर आप दिल्ली के आस-पास हैं – शायद प्रदर्शनी अभी कुछ दिन चलने वाली है, आप ज़रूर देखना। और जल्दबाजी मत करना मेरी तरह। मैं तो दो-ढाई घंटे में वापिस आ गया, लेकिन आप को तो तीन-चार घंटे ज़रूर लग जायेंगे। जरुर देखिये।

लोकतंत्र की ताकत देखिये, एक छोटे बालक ने प्रधानमंत्री को आदेश किया है, लेकिन वो बालक जल्दबाजी में अपना नाम बताना भूल गया है। तो मेरे पास उसका नाम तो है नहीं, लेकिन उसकी बात प्रधानमंत्री को तो गौर करने जैसी है ही है, लेकिन हम सभी देशवासियों को गौर करने जैसी है। सुनिए, ये बालक हमें क्या कह रहा है:

“प्रधानमंत्री मोदी जी, मैं आपको कहना चाहता हूँ कि जो आपने स्वच्छता अभियान चलाया है, उसके लिये आप हर जगह, हर गली में डस्टबिन लगवाएं।”

इस बालक ने सही कहा है। हमें स्वच्छता एक स्वभाव भी बनाना चाहिये और स्वच्छता के लिए व्यवस्थायें भी बनानी चाहियें। मुझे इस बालक के सन्देश से एक बहुत बड़ा संतोष मिला। संतोष इस बात का मिला, 2 अक्टूबर को मैंने स्वच्छ भारत को लेकर के एक अभियान को चलाने की घोषणा की, और मैं कह सकता हूँ, शायद आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ होगा कि संसद में भी घंटों तक स्वच्छता के विषय पर आजकल चर्चा होती है। हमारी सरकार की आलोचना भी होती है। मुझे भी बहुत-कुछ सुनना पड़ता है, कि मोदी जी बड़ी-बड़ी बातें करते थे स्वच्छता की, लेकिन क्या हुआ ? मैं इसे बुरा नहीं मानता हूँ। मैं इसमें से अच्छाई यह देख रहा हूँ कि देश की संसद भी भारत की स्वच्छता के लिए चर्चा कर रही है।

और दूसरी तरफ देखिये, एक तरफ संसद और एक तरफ इस देश का शिशु – दोनों स्वच्छता के ऊपर बात करें, इससे बड़ा देश का सौभाग्य क्या हो सकता है। ये जो आन्दोलन चल रहा है विचारों का, गन्दगी की तरफ नफरत का जो माहौल बन रहा है, स्वच्छता की तरफ एक जागरूकता आयी है – ये सरकारों को भी काम करने के लिए मजबूर करेगी, करेगी, करेगी! स्थानीय स्वराज की संस्थाओं को भी – चाहे पंचायत हो, नगर पंचायत हो, नगर पालिका हो, महानगरपालिका हो या राज्य हो या केंद्र हो – हर किसी को इस पर काम करना ही पड़ेगा। इस आन्दोलन को हमें आगे बढ़ाना है, कमियों के रहते हुए भी आगे बढ़ाना है और इस भारत को, 2019 में जब महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती हम मनायेंगे, महात्मा गांधी के सपनों को पूरा करने की दिशा में हम काम करें।

और आपको मालूम है, महात्मा गांधी क्या कहते थे? एक बार उन्होंने कहा है कि आज़ादी और स्वच्छता दोनों में से मुझे एक पसंद करना है, तो मैं पहले स्वच्छता पसंद करूँगा, आजादी बाद में। गांधी के लिए आजादी से भी ज्यादा स्वच्छता का महत्त्व था। आइये, हम सब महात्मा गांधी की बात को मानें और उनकी इच्छा को पूरी करने के लिए कुछ कदम हम भी चलें। दिल्ली से गुलशन अरोड़ा जी ने MyGov पर एक मेसेज छोड़ा है।

उन्होंने लिखा है कि दीनदयाल जी की जन्म शताब्दी के बारे में वो जानना चाहते हैं।

मेरे प्यारे देशवासियो, महापुरुषों का जीवन सदा-सर्वदा हमारे लिए प्रेरणा का कारण रहता है। और हम लोगों का काम, महापुरुष किस विचारधारा के थे, उसका मूल्यांकन करना हमारा काम नहीं है। देश के लिये जीने-मरने वाले हर कोई हमारे लिये प्रेरक होते हैं। और इन दिनों में तो इतने सारे महापुरुषों को याद करने का अवसर आ रहा है, 25 सितम्बर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय, 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, 11 अक्टूबर को जयप्रकाश नारायण जी, 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल – कितने अनगिनत नाम हैं, मैं तो बहुत कुछ ही बोल रहा हूँ, क्योंकि ये देश तो बहुरत्ना वसुंधरा है।

आप कोई भी date निकाल दीजिये, इतिहास के झरोखे से कोई-न-कोई महापुरुष का नाम मिल ही जाएगा। आने वाले दिनों में इन सभी महापुरुषों को हम याद करें, उनके जीवन का सन्देश हम घर-घर तक पहुंचायें और हम भी उनसे कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करें।

मैं विशेष करके 2 अक्टूबर के लिए फिर से एक बार आग्रह करना चाहता हूँ। 2 अक्टूबर पूज्य बापू महात्मा गांधी की जन्म-जयन्ती है। मैंने गत वर्ष भी कहा था कि आपके पास हर प्रकार के fashion के कपड़े होंगे, हर प्रकार का fabric होगा, बहुत सी चीजें होंगी, लेकिन उसमें एक खादी का भी स्थान होना चाहिये। मैं एक बार फिर कहता हूँ कि 2 अक्टूबर से लेकर के एक महीने भर खादी में रियायत होती है, उसका फायदा उठाया जाए। और खादी के साथ-साथ handloom को भी उतना ही महत्व दिया जाये। हमारे बुनकर भाई इतनी मेह्नत करते हैं, हम सवा सौ करोड़ देशवासी 5 रूपया, 10 रुपया, 50 रूपया की भी कोई हैंडलूम की चीज़, कोई खादी की चीज़ ख़रीद लें, ultimately वो पैसा, वो गरीब बुनकर के घर में जायेगा। खादी बनाने वाली ग़रीब विधवा के घर में जायेगा। और इसलिए इस दीवाली में हम खादी को ज़रुर अपने घर में जगह दें, अपने शरीर पर जगह दें। मैं कभी ये आग्रह नहीं करता हूँ कि आप पूर्ण रूप से खादीधारी बनें! कुछ – बस, इतना ही आग्रह है मेरा। और देखिये, पिछली बार क़रीब-क़रीब बिक्री को double कर दिया। कितने ग़रीबों का फ़ायदा हुआ है। जो काम सरकार अरबों-खरबों रूपये के advertisement से नहीं कर सकती है, वो आप लोगों ने छोटे से मदद से कर दी। यही तो जनशक्ति है। और इसलिए मैं फिर से एक बार उस काम के लिए आपको आग्रह करता हूँ।

प्यारे देशवासियो, मेरा मन एक बात से बहुत आनंद से भर गया है। मन करता है, इस आनंद का आपको भी थोड़ा स्वाद मिलना चाहिये। मैं मई महीने में कोलकाता गया था और सुभाष बोस के परिवारजन मिलने आये थे। उनके भतीजे चंद्रा बोस ने सब organize किया था। काफी देर तक सुभाष बाबू के परिवारजनों के साथ हंसी-खुशी की शाम बिताने का मुझे अवसर मिला था। और उस दिन ये तय किया था कि सुभाष बाबू का वृहत परिवार प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आये। चंद्रा बोस और उनके परिवारजन इस काम में लगे रहे थे और पिछले हफ्ते मुझे confirmation मिला कि 50 से अधिक सुभाष बाबू के परिवारजन प्रधानमंत्री निवास-स्थान पर आने वाले हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, मेरे लिए कितनी बड़ी खुशी का पल होगा! नेताजी के परिवारजन, शायद उनके जीवन में पहली बार सबको मिलकर के एक साथ प्रधानमंत्री निवास जाने का अवसर आया होगा। लेकिन उससे ज्यादा मेरे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री निवास-स्थान में ऐसी मेहमाननवाज़ी का सौभाग्य कभी भी नहीं आया होगा, जो मुझे अक्टूबर में मिलने वाला है। सुभाष बाबू के 50 से अधिक – और सारे परिवार के लोग अलग-अलग देशों में रहते हैं – सब लोग खास आ रहे हैं। कितना बड़ा आनंद का पल होगा मेरे लिए। मैं उनके स्वागत के लिए बहुत खुश हूँ, बहुत ही आनंद की अनुभूति कर रहा हूँ।

एक सन्देश मुझे भार्गवी कानड़े की तरफ से मिला और उसका बोलने का ढंग, उसकी आवाज़, ये सब सुन करके मुझे ये लगा, वो ख़ुद भी लीडर लगती है और शायद लीडर बनने वाली होगी, ऐसा लगता है।

“मेरा नाम भार्गवी कानड़े है। मैं प्रधानमंत्री जी से ये निवेदन करना चाहती हूँ कि आप युवा पीढ़ी को voters registration के बारे में जागृत करें, जिससे आने वाले समय में युवा पीढ़ी का सहभाग बढ़े और भविष्य में युवा पीढ़ी का महत्वपूर्ण सहयोग सरकार चुनने में हो और चलाने में भी हो सके। धन्यवाद।”

भार्गवी ने कहा है कि मतदाता सूची में नाम register करवाने की बात और मतदान करने की बात। आपकी बात सही है। लोकतंत्र में हर मतदाता देश का भाग्यविधाता होता है और ये जागरूकता धीरे-धीरे बढ़ रही है। मतदान का परसेंटेज भी बढ़ रहा है। और मैं इसके लिए भारत के चुनाव आयोग को विशेष रूप से बधाई देना चाहता हूँ। कुछ वर्ष पहले हम देखते थे कि हमारा Election Commission एक सिर्फ़ regulator के रूप में काम कर रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसमें बहुत बड़ा बदलाव आया है। आज हमारा Election Commission सिर्फ़ regulator नहीं रहा है, एक प्रकार से facilitator बन गया है, voter-friendly बन गया है और उनकी सारी सोच, सारी योजनाओं में मतदाता उनके केंद्र में रहता है। ये बहुत अच्छा बदलाव आया है। लेकिन सिर्फ़ चुनाव आयोग काम करता रहे, इससे चलने वाला नहीं है। हमें भी स्कूल में, कॉलेज में, मोहल्ले में, ये जागृति का माहौल बनाये रखना चाहिये – सिर्फ़ चुनाव आये, तब जागृति हो, ऐसा नहीं। मतदाता सूची अपग्रेड होती रहनी चाहिये, हमें भी देखते रहना चाहिये। मुझे अमूल्य जो अधिकार मिला है, वो मेरा अधिकार सुरक्षित है कि नहीं, मैं अधिकार का उपयोग कर रहा हूँ कि नहीं कर रहा हूँ, ये आदत हम सबको बनानी चाहिये। मैं आशा करता हूँ, देश के नौजवान अगर मतदाता सूची में register नहीं हुए हैं, तो उन्हें होना चाहिये और मतदान भी अवश्य करना चाहिये। और मैं तो चुनावों के दिनों में publicly कहा करता हूँ कि पहले मतदान, फिर जलपान। इतना पवित्र काम है, हर किसी ने करना चाहिये।

परसों मैं काशी का भ्रमण करके आया। बहुत लोगों से मिला, बहुत सारे कार्यक्रम हुए। इतने लोगों से मिला, लेकिन दो बालक, जिनकी बात मैं आपसे करना चाहता हूँ। एक मुझे क्षितिज पाण्डेय करके 7वीं कक्षा का छात्र मिला। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में केंद्रीय विद्यालय में वो 7वीं कक्षा में पढ़ता है। वैसे है बड़ा तेजतर्रार। उसका confidence level भी बड़ा गज़ब है| लेकिन इतनी छोटी आयु में Physics के अनुसंधान में उसकी रूचि मैंने देखी। मुझे लगा कि बहुत-कुछ वो पढ़ता होगा, internet surfing करता होगा, नये-नये प्रयोग देखता होगा, Rail Accidents कैसे रोके जाएँ, कौन सी technology हो, energy में खर्चा कैसे कम हो, Robots में feelings कैसे आये, न-जाने क्या-क्या बातें बता रहा था। बड़ा गज़ब का था, भाई! खैर, मैं बारीकी से उसका ये तो नहीं देख पाया कि वो जो कह रहा है, उसमें कितनी बारीकी है, क्या है, लेकिन उसका confidence level, उसकी रुचि, और मैं चाहता हूँ कि हमारे देश के बालकों की विज्ञान के प्रति रुचि बढ़नी चाहिये। बालक के मन में लगातार सवाल उठने चाहिये – क्यों? कैसे? कब? ये बालक मन से पूछना चाहिये।

वैसे ही मुझे सोनम पटेल, एक बहुत ही छोटी बालिका से मिलना हुआ। 9 साल की उम्र है। वाराणसी के सुन्दरपुर निवासी सदावृत पटेल की वो एक बेटी, बहुत ही गरीब परिवार की बेटी है। और मैं हैरान था कि बच्ची, पूरी गीता उसको कंठस्थ है। लेकिन सबसे बड़ी बात मुझे ये लगी कि जब मैंने उसको पूछा, तो वो श्लोक भी बताती थी, अंग्रेजी में interpretation करती थी, उसकी परिभाषा करती थी, हिन्दी में परिभाषा करती थी। मैंने उनके पिताजी को पूछा, तो बोले, वो पांच साल की उम्र से बोल रही है। मैंने कहा, कहाँ सीखा? बोले, हमें भी मालूम नहीं है। तो मैंने कहा, और पढ़ाई में क्या हाल है, सिर्फ़ गीता ही पढ़ती रहती है और भी कुछ करती है? तो उन्होंने कहा, नहीं जी, वो Mathematics एक बार हाथ में ले ले, तो शाम को उसको सब मुखपाठ होता है। History ले ले, शाम को सब याद होता है। बोले, हम लोगों के लिए भी आश्चर्य है, पूरे परिवार में कि कैसे उसके अंदर है। मैं सचमुच में बड़ा प्रभावित था। कभी कुछ बच्चों को celebrity का शौक हो जाता है, ऐसा ही सोनम में कुछ नहीं था। अपने आप में ईश्वर ने कोई शक्ति ज़रूर दी है, ऐसा लग रहा था मुझे।

खैर इन दोनों बच्चे, मेरी काशी यात्रा में एक विशेष मेरी मुलाक़ात थी। तो मुझे लगा, आपसे भी बता दूं। TV पर जो आप देखते हैं, अखबारों में पढ़ते हैं, उसके सिवाय भी बहुत सारे काम हम करते हैं। और कभी-कभी ऐसे कामों का कुछ आनंद भी आता है। वैसा ही, इन दो बालकों के साथ, मेरी बातचीत मेरे लिए यादगार थी।

मैंने देखा है कि ‘मन की बात’ में कुछ लोग मेरे लिए काफी कुछ काम लेकर के आते हैं। देखिये, हरियाणा के संदीप क्या कह रहे हैं – “संदीप, हरियाणा। सर, मैं चाहता हूँ कि आप जो ‘मन की बात’ ये महीने में एक बार करते हैं, आपको वीकली करनी चाहिए, क्योंकि आपकी बात से बहुत प्रेरणा मिलती है।”

संदीप जी, आप क्या-क्या करवाओगे मेरे पास? महीने में एक बार करने के लिए भी मुझे इतनी मशक्कत करनी पड़ती है, समय का इतना adjust करना पड़ता है। कभी-कभी तो हमारे आकाशवाणी के सारे हमारे साथियों को आधा-आधा पौना-पौना घंटा मेरा इंतजार करके बैठे रहना पड़ता है। लेकिन मैं आपकी भावना का आदर करता हूँ। आपके सुझाव के लिए मैं आपका आभारी हूँ। अभी तो एक महीने वाला ही ठीक है।

‘मन की बात’ का एक प्रकार से एक साल पूरा हुआ है। आप जानते हैं, सुभाष बाबू रेडियो का कितना उपयोग करते थे? जर्मनी से उन्होंने अपना रेडियो शुरू किया था। और हिन्दुस्तान के नागरिकों को आज़ादी के आन्दोलन के सम्बन्ध में वो लगातार रेडियो के माध्यम से बताते रहते थे। आज़ाद हिन्द रेडियो की शुरुआत एक weekly News Bulletin से उन्होंने की थी। अंग्रेजी, हिन्दी, बंगाली, मराठी, पंजाबी, पश्तो, उर्दू – सभी भाषाओं में ये रेडियो वो चलाते थे।

मुझे भी अब आकाशवाणी पर ‘मन की बात’ करते-करते अब एक साल हो गया है। मेरे मन की बात आपके कारण सच्चे अर्थ में आपके मन की बात बन गयी है। आपकी बातें सुनता हूँ, आपके लिए सोचता हूँ, आपके सुझाव देखता हूँ, उसी से मेरे विचारों की एक दौड़ शुरू हो जाती है, जो आकाशवाणी के माध्यम से आपके पास पहुँचती है। बोलता मैं हूँ, लेकिन बात आपकी होती है और यही तो मेरा संतोष है। अगले महीने ‘मन की बात’ के लिए फिर से मिलेंगे। आपके सुझाव मिलते रहें। आपके सुझावों से सरकार को भी लाभ होता है। सुधार की शुरुआत होती है। आपका योगदान मेरे लिए बहुमूल्य है, अनमोल है।

फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनायें। धन्यवाद।

वीडियो प्ले कर सुनें मोदी के मन की बात