घोंसला : एक चिड़िया और बच्चे की कहानी

उस विनाशकारी तूफान से पखवाड़े भर पहले की ही बात रही होगी, जब चिड़िया के एक जोड़े ने कंक्रीट के जंगल के उस छोटे से झुरमुट में अपना घोंसला बनाया था। 2 मई को उत्तर प्रदेश, राजस्थान समेत देश के कई इलाकों में इस तूफान से 100 से ज्यादा लोगों ली जान चली गई थी और कई सैकड़ा मकान और पेड़ ध्वस्त हो गए थे। नीलाभ की नज़रें जब से इस घोंसले पर पड़ीं, वो बिना नागा स्कूल जाने से पहले इसके दर्शन करता। उसका बराबर आग्रह होता कि उसके साथ मैं भी घोंसले में हो रहे नवसृजन को देखूं। उसकी जिद ने मेरी भी उत्सुकता बढ़ा दी थी। दरअसल उसने मुझे एक बार फिर बचपन में लौटा दिया था, जब हमने कितनी ही गौरैया को घोंसले बनाते देखा था। अंडों से चूजे बनते और उनकी लालिमा लिए हुए त्वचा पर पंख उगते देखा था। कई बार ये अंडे गिरकर फूट जाते और अपनी भाषा में चिड़िया के उस रुदन को भी महससू किया था।

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ये चिड़िया गौरैया नहीं थी, नीलाभ ने उसे अपनी भाषा में स्पाइक बर्ड नाम दिया था, क्योंकि उसके माथे पर एक काला सा उभार था। बुरे अनुभव आगे के लिए सतर्क कर देते हैं, और नीलाभ भी पिछली बार की तुलना में अधिक सतर्क था। हम उस झुरमुट के पास तभी जाते, जब नीलाभ का कोई हमउम्र बच्चा आसपास नहीं होता। पिछली बार भी इसी प्रजाति की चिड़िया ने उसी जगह घोंसला बनाया था, अंडे भी आए लेकिन बच्चों की शरारत ने परवाज़ भरने से पहले ही जीवन छीन लिया था। इंसान का इंसान से भरोसा भले ही एक कटु अनुभव से टूट जाए लेकिन पक्षी शायद कोर्स करेक्शन के लिए एक और मौका देने पर यकीन करते हैं।
अब तक अंडों से बच्चे सुरक्षित निकल चुके थे, चारों एक दूसरे में ऐसे चोंच घुसाए हुए थे कि जलेबी बन गए थे। सोसाइटी के बच्चों को इस बार नीलाभ ने भनक तक नहीं लगने दी थी।

अब अचानक बवंडर वाली वो शाम आ गई। मैं दफ्तर की काँच की
बहुमंज़िला इमारत के सोलहवें में माले से इस तूफान की तीव्रता को महसूस कर रहा था। पूरी बिल्डिंग काँप रही थी। करीब एक घन्टे का कहर थमा तो उससे हुए जान माल के नुकसान की खबरें आने लगी थीं।
इधर सोसाइटी के फ्लैटों की खिड़कियों के कितने ही कांच टूट टूटकर गिर रहे थे। तूफान इतना तेज था कि सबकुछ उड़ा ले जाना चाहता था। नीलाभ बंद खिड़कियों से केवल उस झुरमुट को देख रहा था। जब बड़े बड़े पेड़, मकान धराशायी हो रहे थे तो उसे उस अनहोनी की पूरी आशंका हो चली थी जो वो बिल्कुल नहीं चाहता था। इतने भीषण तूफान में ना घोंसला बचा होगा और ना बच्चे। घन्टे भर बाद तूफान थम चुका था। मैं भी दफ़्तर से घर पहुंच चुका था। हर तरफ तबाही सा मंज़र था। मेरे आते ही हम सबसे पहले झुरमुट की तरफ गए और जो देखा उसने नीलाभ की आँखों में एक नई चमक ला दी थी। ना तो घोंसले का कुछ बाल बांका हुआ था और चारों बच्चे उसमें ऐसे सो रहे थे, जैसे तेज झूला झूलने के बाद गहरी नींद में बच्चे सो जाया करते हैं। इस सब के बीच नीलाभ का सवाल भी बहुत वाजिब था, कि ऐसी आपदा में भी ये कैसे बचे रहे?
दरअसल झुरमुट और घोंसला इसलिए बचे रहे, एक तो उनकी टहनियों में कट्टरता (कठोरता) नहीं थीं, इसी लचीलेपन ने उसे तूफान से लड़ने की शक्ति दी। कई बार झुक जाना ही आपका सामर्थ्य बन जाता है।
जिस दिशा से तूफान आता टहनियाँ, उसी दिशा में झुक जातीं और उसका असर ना घोंसले पर हो पाया और ना चिड़ियों के बच्चों पर। जो जितना कठोर था, वो इस तूफान में उजड़ चुका था। इंसानों के लिए ये तूफान किसी आपदा की तरह आते हों लेकिन पक्षी इस तरह के आशंकित जोखिमों के आदी रहते हैं, इसलिए उन्होंने नवसृजन के लिए किसी कठोर तने पर दांव लगाने के बजाय, ऐसे झुरमुट पर दांव लगाया जो तूफान के थपेड़ों को अपनी अकड़ के बजाय लचीलेपन से काउंटर कर सके।

तूफान के बाद

चिड़ियों के बच्चे अब फुदक-फुदककर कई बार घोंसले के ऊपर आने लगे थे। चिड़िया पास के ही एक ऊंचे झुरमुट पर बैठकर, उनकी हरकतों पर हमेशा नजरें गड़ाए रखती थी। किसी आशंकित जोख़िम पर वो जोर जोर से चहचहाने लगती। हम भी उसे किसी जोख़िम से कम नहीं लगते। बच्चों के अब डैने निकलने लगे थे। फलांग, दो फलांग उड़ने लगे थे। चिड़िया के जोड़े पर तसल्ली के भाव साफ नज़र आ रहे थे,कि बच्चे अपने पंखों के बल उड़ना सीख रहे थे। कई बार चारों एक साथ उड़ान भरते। चिड़िया की तरह नीलाभ को भी तसल्ली थी कि उसका मिशन सक्सेस हुआ। जब बच्चे अपने पैरों पे खड़े हो जाएं या अपने पंखों के बल उड़ने लगें तो घोंसला सूना होना भी सुनिश्चित होता है। चिड़िया ये सब जानती है, लेकिन वो उन्हें उड़ाने योग्य बनाने के लिए वो सब करती है, जो वो कर सकती है। वो तिनका-तिनका जोड़ती है, दाना चुगाती है और एक दिन बच्चे जब खुद से उड़ने लगते हैं, उस दिन नील गगन में फुर्र हो जाते हैं।

पीछे छूट जाता है, खाली घोंसला और उनकी नटखट स्मृतियां। अब चारों ने अपनी अपनी उड़ान के दायरे बड़ा दिए थे। एक फ्लैट से दूसरे फ्लैट की बालकनी पर उड़ते हुए हम उन्हें पहचानने की कोशिश करते। एक दिन उन्होंने ऐसी उड़ान भरी कि उनकी पहचान गुम हो गई, पीछे छूट गया खाली घोंसला।

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मन का विचार 2: नारी #Women’s strength

नारी
वो सुबह-शाम का हिसाब रखती
वो दिन-रात के गणित को हल करती
वो घर के कोने-कोने को नापती
वो बच्चों की क्रिया-प्रतिक्रिया को परखती
सबके कहे-अनकहे शब्दों के व्यंजकों को समझती
वो अंदर-बाहर की आलोचना-समालोचना का आंकलन करती
वो अर्थव्यवस्था को सम्हालती
वो पास-पड़ोस में सामाजिकता को निभाती
वो सबके वक्त से अपना वक्त मिलाती
पर भूल जाती
वो अपने हिस्से के वक्त का हिसाब रखना।

नदी-जब तुम नही रहोगी: #environment day special

नदी: जब तुम नहीं रहोगी
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नदी
हमारी लगातार गलतियों से जब
एक दिन जब तुम नहीं रहोगी
तुम्हारे किनारे की हरियाली भी नहीं रहेगी
शीतल हवा भी नहीं बहेगी
तुम्हारे आंचल में वो चिकने पत्थर भी नहीं रहेंगे
तुम्हारे गर्भ में पल रहे वो जीव-जंतु भी नहीं रहेंगे
तुम्हारे बहने की वो संगीतमयी आवाज भी नहीं रहेगी
फैक्ट्रियों का ढेर कचरा और गंदा पानी हम ऐसे ही तुम में फेंकते रहे तो
नदी, एक दिन तुम नहीं रहोगी
जब तुम नहीं रहोगी, तुम्हारी बहुत याद आएगी
तुम्हारे ना रहने से, हम भी कितने दिन जिंदा रह पाएंगे।
नदी : जब तुम नही रहोगी।

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मन का विचार 1: परछाई, काँच, दोस्त

“जीवन में कुछ दोस्त काँच और परछाई जैसे रखो क्योंकि काँच कभी झूठ नही बोलता और परछाई कभी साथ नही छोड़ती।”
अक्सर फेसबुक पर यह विचार पढ़ने को मिल जाता है जिसमें दोस्त की तुलना परछाई और काँच से कर इनके जैसे ही दोस्त रखने का विचार लिखा गया है, लेकिन मेरा मानना है कि एक दोस्त या मित्र को परछाई या काँच के जैसा नही होना चाहिए क्योंकि……………….

परछाई हमारे साथ हमेशा नही रहती और जब तक रहती है तब तक पल-पल अपना आकार बदलती रहती है। जब हम दोपहर में कड़ी धूप में होते हैं सूरज ठीक हमारे सर पर होता है तब हमारी परछाई अपना आकार छोटा कर हमारे ही शरीर के पीछे खुद को छुपाती सी नज़र आती है और जब कम धूप में होते हैं मतलब सुबह-शाम तो यह अपना आकार हमारे शरीर से भी बड़ा कर हमारा साथ निभाती नज़र आती है। और अँधेरे में तो सबको मालूम है कि वो कैसे साथ छोड़कर अदृश्य हो जाती है।
और रहा सवाल काँच का तो काँच पारदर्शी होता है, यानी कि सब कुछ आर-पार दिखाई देता है जिससे बचने के लिए हमें अपने घरों में पर्दे लगाने पड़ते हैं या फिर लैमिनेटेड काँच लगवाने पड़ते हैं, सामान्य काँच कोई भी सीक्रेट नही रहने देता, दोस्त ऐसा होना चाहिए जो हमारे राज दुनिया के सामने न खोले। अब बात करते हैं दर्पण यानि आईने की, तो आइना सिर्फ वो दिखाता है जो उसके सामने लाया जाता है, अब चाहे वो मुखौटा वाला चेहरा हो या मेकअप से बनायी गयी सुंदरता या और भी जो कुछ, उसके पीछे का सच वो खुद नही जानता। ऐसा दोस्त आपको आपकी असलियत कभी नही बता सकता।

यह मेरे अपने विचार हैं मेरा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नही है।