विचारों का असर या जीवन का असर: thought by heart

अक्सर लोगों को कहते सुना है कि हमारे अच्छे-बुरे विचार, हमारे अंदर की खुशी और डर हमारे जीवन पर असर डालते हैं।
लेकिन किसी भी व्यक्ति के अंदर ये ख़ुशी या डर यूँ ही अपने आप नही पनपता, उसके पीछे उसके जीवन में घटित सारी अच्छी-बुरी घटनाओं का समूह या ये कहें कि पूरा Root System और Shoot System उसके मानस पटल पर अपना डेरा डालकर उसके विचारों को प्रभावित करता है।
चाहे वो अच्छे विचार हों या बुरे।
हमारा जीवन जिस प्रकार व्यतीत होता है वो हमारे मन में आने वाले विचारों को प्रभावित करता है।

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माँ अम्बे, माँ काली से विनती,एक खत उनके नाम……..

आज हर महिला अपने आप को सशक्त बनाने के लिए प्रयासरत है। वो डॉ., शिक्षक, आई ए एस, पायलट बनकर सब तरह से सक्षम होकर समाज में फैली कुछ बुराइयों के खिलाफ खड़ी हुई है।वह मानसिक रूप से सक्षम, सहनशील, धैर्यवान और गम्भीर तो है लेकिन जब एक डॉ. बनने जा रही लड़की के साथ चार दरिंदे एक साथ हैवानियत की हर हद पार करते हैं और उसे निर्भया बुलाया जाने लगता है। एक छोटी सी बच्ची को तेजाब से नहला दिया जाता है………..एक पति अपनी पत्नी का गला दबाकर उसकी हत्या केवल इसलिए कर देता है कि दहेज में बाइक नही मिली……….. दूसरी जगह कार न मिलने पर उसे जिन्दा आग के हवाले कर दिया जाता है……….

(तब उसके अंदर खुद को बचाने की कोई शक्ति नहीं होती……वह शारीरिक रूप से बलवान नही है, वह शक्तिहीन है। )
हे माँ ये सब निर्भया, नैंसी, गुड़िया इन सभी को कभी न कभी कोई न कोई आपके रूप की,नारी शक्ति की उपमा देते हैं…….. लेकिन माँ उसने शेर की सवारी नही की हुई है, अपने हाथों में तलवार, गदा, शंख, सर्प, चक्र, खून का कटोरा, हन्टर, आँखों में अग्नि के समान तेज ज्वाला, रक्त से सनी हुई लाल लाल निकली हुई जीभ ये सब अस्त्र-शस्त्र धारण नही किये हुए है।
सभी महिलाएं आपको मन्दिर में जाकर श्रृंगार की सारी वस्तुएं जैसे रोली कुमकुम काजल चूड़ी चुनरी सब चढावे में चढ़ाती हैं और वही सब अपने लिए भी मांगती हैं। कभी ऐसा हो की सभी लड़कियां, महिलाये आपको वो सब अस्त्र-शस्त्र चढ़ाये जो आप धारण करती हैं, और वही सब स्वयं के लिए भी आपसे मांगे जिससे वो अपनी सुरक्षा कर सकें।
माँ आपने कन्या के रूप में भैरव को परास्त किया……शुम्भ निशुम्भ को मारा, महिषासुर का मर्दन किया मधु-कैटभ जैसे अनेक   बलशाली राक्षसों का संहार किया है। आप दक्षकन्या हैं तो दक्षयज्ञ विनाशिनी भी आप हैं। आपकी महिमा से वेद, पुराण भरे पड़े हैं………..

आपसे सिर्फ एक विनती है की जब भी कही कोई नैंसी पर या निर्भया पर हैवानियत दिखाने की कोशिश भी करे तो आप अपनी शक्ति के सहस्त्र हजारवें हिस्से का एक छोटा सा अंश भी अगर 5 मिनट के लिए ही उसके अंदर भेज दें,………..तो वो वही के वही LHS=RHS का गणित solve कर दे…..फिर न कृष्ण की जरूरत पड़ेगी, न किसी पुलिस की, न वकील की, न जज की।
(आगे की बात कहने से पहले दण्डवत प्रणाम कर पहले ही माफ़ी मांगती हूँ)
क्योकि उस निर्भया के कृष्ण के साथ द्रौपदि, अर्जुन और कुंती जैसे सम्बन्ध नहीं हैं, ये कलयुग है यहाँ हर काम सिफारिश से होता है। अब कोई ये मत कहना की द्रौपदी जैसी पुकार होनी चाहिए कि कृष्ण दौड़े चले आएं…….जब किसी के साथ क्रूरता की हर हद पार हो रही हो, तो उसकी आत्मा बैठकर मोतीचूर के लड्डू नही खाती होगी, गरवा या भांगड़ा नृत्य नही करती होगी। लेकिन उसकी चीखें सुनकर न तो कृष्ण आते हैं न वो कोई चमत्कार करते हैं…….. की इतने बड़े जनसंख्या वाले देश मेँ धोखे से ही सही उस समय कोई जन समूह वहां से गुजरे और उसे मदद मिले………. वैसे भीड़ हर जगह मौजूद रहती है लेकिन उस समय ऐसा चमत्कार भी नही होता।
(आपके पूरे अवतार की तो जरूरत ही नही क्योकि अभी के राक्षस शुम्भ-निशुम्भ, महिषासुर, मधु-कैटभ जैसे वरदान प्राप्त नही हैं, जो आपको सामने से चुनौती देते थे कि या तो मेरे साथ युद्ध करो या मेरी रानी बनना स्वीकार करो, जैसा कि शास्त्रों में लिखा है, ऐसे राक्षस नही है। ये तो 5 मिनट में ही आपके छोटे से अंश से धराशायी हो जायेंगे। )
प्रणाम माँ अम्बे, माँ काली।

तुम कहते हो मेरी शहादत पर गर्व करो : thought by heart

तुम कहते हो मेरी शहादत पर गर्व करो

देश की सीमाओं की रक्षा में, आतंकवाद से लड़ते हुए जब हमारे जवान शहीद हो जाते हैं तो उसके कफन के साथ देशभक्ति का एक उबाल सा आ जाता है और जैसे ही उसका शरीर पंचतत्व में विलीन होता है, ये देशभक्ति का उबाल भी खत्म हो जाता है। ऐसे लगता है जैसे सारी भावनाएं महज एक रस्म अदायगी जैसी होती हैं। इस सबके बाद क्या बीतती है उस परिवार पर, पढ़िए उनकी मनोस्थिति।
हमारे बच्चे जब भी किसी जगह अपने साथियों को पापा के साथ खेलते उनकी हर जिद पूरी होते हुए देखते हैं,उनके चेहरे पर उदासीनता होती है,और आँखे शून्य की तरफ निहारती हैं। जब भी कोई उन्हें डाँटता है मुझे अच्छा नहीं लगता। सोचती हूँ, तुम होते तो कोई उन्हें यूँ ना डाँटता, कोई प्यार करता है तब भी मुझे बुरा लगता है, तुम होते तो कोई यूँ दया ना दिखाता।

अब वो नाजायज तो छोड़ो जायज जिद भी नहीं करते, तुम कहते हो गर्व करो।

हमारे घर की गोपनीयता नहीं रही, अब वो सार्वजनिक स्थल बनकर रह गया है, जिसका जब मन करता है शोक मनाने आ जाता है, राजनीति का बिषय बन गया है हमारा घर। जवानों की मौतों पर सियासत की ठिठोली होती है, तुम कहते हो गर्व करो।

जब तुम थे तो तुम्हारी सूखी दाल-रोटी पर बहस होती थी, अब देखो लाखो रुपयों की बारिश हो रही हैं। शहीदों के नाम पर दान करने के लिए app बनाये जा रहे हैं, जो लोग ये कर रहे हैं मै उनकी भावनाओं का सम्मान करती हूँ,इसमें एक अच्छी बात यह है की ये समाज,ये सियासत के रखवाले ये स्वीकार तो करते हैं की जवानों की आर्थिक स्थिति कैसी होती है, जो अचानक से उनकी शहादत के बाद इतने पालनहार पैदा हो जाते हैं। वरना किसी भी अन्य क्षेत्र के महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मौत पर इस तरह दया दिखाने की नौबत क्यों नहीं आती?
लेकिन है तो ये खैरात ही,
क्या तुम होते तो अपने परिवार को दान के दिये रुपयों से पालते?
इस सबमें हमें अपनी लाचारी नजर आ रही है, तुम कहते हो गर्व करो।

मेरी जिंदगी को रिक्त करके एक शून्य देकर चले गए, अब हर ख़ुशी के मौके पर एक बात रह जानी है, तुम होते तो……… किसी भी घटना या दुःख के मौके पर एक बात रह जानी है की तुम होते तो शायद ये न हो पाता…… क्या तुम्हारा ये गर्व इस खाली स्थान को भर सकता है?
मैं अपने बारे में क्या कहूँ मेरा तो गर्व ही तुम थे, जो तुम अपने साथ ले गए, फिर भी तुम कहते हो गर्व करो।
कैसे????

क्यों हम जवानों और उनके परिवारों को जिंदा रहते वो सुख-सुविधाएं नहीं दे सकते, बाकी लोगों की तरह जिसके वो भी हकदार हैं। हम, क्यों उनके शहीद होने तक का इंतजार करते हैं और फिर उनके परिवार को दया का पात्र समझकर सबसे बड़े देशभक्त होने का दिखावा करते है।

Daughter Vs Son : thought by heart , मन का विचार 14

Multitasking talent केवल लड़कियों में ही होता है वो एक साथ हजारों काम(समाज द्वारा निर्धारित लड़के और लड़कियों के लिए विभाजित काम) करके वक्त पड़ने पर बेटा और बेटी दोनों का फ़र्ज बहुत आसानी से बिना किसी परेशानी के निभा ले जाती हैं। उन्हें जरूरत नही पड़ती कि फ़र्ज निभाने के लिए भाई या उसका पति उनके साथ हो।

लेकिन यदि किसी घर में बेटी है और उसकी शादी के बाद या किसी घर में बेटी है ही नही, तो कोई लड़का बेटी की कमी जिम्मेदारियों के साथ पूरी नही कर पाता।
हर माँ बाप को अपनी लड़की के लिए यह कहते बहुत सुना कि यही मेरी बेटी है और बेटा भी यही है, लेकिन किसी भी माँ बाप को लड़के के लिए यह कहते कभी नही सुना कि यही मेरा बेटा है और बेटी भी यही है।

मुखौटा : thought by heart मन का विचार 13

कभी कभी जीवन गुज़र जाता है,

मुखौटों के अंदर चेहरे पहचानने में,

और कभी कभी जिंदगी कम पड़ जाती है,

किसी के निर्बाध, निस्वार्थ, अनमोल प्रेम का मोल चुकाने मेँ।

Artificial People has Artificial Life : मन का विचार 12

कुछ लोग इतनी कृत्रिम जिंदगी जीने के आदी होते हैं कि उन्हें खुद नही मालूम होता कि वो अपनी इस दुनिया में इस हद तक डूब चुके हैं जहाँ से उन्हें जिंदगी की वास्तविकता नज़र ही नही आती………और कभी वास्तविक जिंदगी उनके सामने आकर खड़ी हो जाये तो वो उसे सहन ही नही कर पाते और अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया से उसका अपमान कर बैठते हैं……..और वो अपमानित वास्तविक जिंदगी इस कदर जमीन से जुड़ी हुई और गम्भीर होती है कि किसी भी तरह उन लोगों को इस बात का एहसास तक नही होने देती, बस एक हल्की सी मुस्कराहट से उनकी मूर्खता पर अट्टहास करती हुई नजर आती है……और कृत्रिम लोग अपने दम्भ में डूबे हुए खुद को महान समझने की खुशफहमी में आगे की नई कृत्रिम हरकत करने के लिए निकल लेते हैं।

जिंदगी vs मौत : मन का विचार 11

ये तो जिंदगी का काम है कि पल-पल गुजरते हुए वर्षों तक चला करती है। 

मौत इतनी आलसी नही, वो तो क्षण भर में अपना काम कर देती है।।

यही वजह है कि मौत से आज तक कोई जीत नही पाया। 

भौतिकवादी vs जरूरत Thought by heart : मन का विचार 10

जरूरतें पूरी करते-करते हम कब भौतिकवादी लोगों की भीड़ में शामिल हो जाते हैं,

पता ही नही चलता। 

और शुरू हो जाती है दूसरों से ज्यादा बड़ा भौतिकवादी बनने की होड़, जिसके लिए हमारे मन में दूसरों का हिस्सा भी हड़प कर जाने का ख्याल मन में आ जाता है। 

और फिर हम कब दूसरों की नज़रों से नीचे गिर जाते हैं, पता ही नही चलता। 

टैक्स तो सभी भरते हैं साहब…..

टैक्स तो सभी भरते हैं साहब…………..

वो बड़ी ही शालीनता के साथ कमरे में अपना काम कर रही थी……..लेकिन उसे सिर्फ इस वजह से बेशर्म और अमर्यादित होने के ताने सुनने पड़ रहे थे क्योंकि उसने बस घूंघट नही किया हुआ था……..और कमरे से लगे हुये आँगन में घर के पुरुष(उसके जेठ जी , ससुर जी )मस्त ठण्डी हवा का आनन्द ले रहे थे, क्योंकि गर्मी है ना। 45डिग्री के तापमान में जहाँ किसी से बिना पंखे के घर में नही रहा जा रहा, जिसमे उसका पूरा शरीर गर्म पानी की तरह उबला जा रहा है और बाकी महिलाओं को उसके घूंघट की पड़ी है………इन महिलाओं को क्या अपने-अपने पतियों पर (जो आँगन में बैठे है) भरोसा नही जो असुरक्षित हुई जा रही हैं कि घर की ही बहू का चेहरा न दिख जाये उन्हें…………… या फिर मर्यादा का इतना ही ख्याल है तो क्या उन मर्दों को एक वही जगह है कही और जाकर नही बैठ सकते मौसम का मजा लेने के लिए………………. वो आँगन घर की बहुओं के लिए छोड़ दे जिसमे वो भी अपने पसीने से तर बालोँ में थोड़ी हवा लगा लें। उसे क्या लोहे का बना हुआ समझा है, चलो भई लोहे की ही सही लेकिन इतनी गर्मी में तो लोहा भी पिघल जाये…….और जब लोहा पिघलता है तो सभी जानते हैं कि वो एक नई संरचना में नवनिर्मित हो जाता है………..और अब वो पिघलकर नए रूप में ढल जाये तब भी सबको समस्या…………. ये महान मर्द भी वो हैं जो fb पर वाहवाही पाने के लिए महिलाओं के विकास की, हर मामले में महिलाओं को आगे लाने की दूसरों को सलाह देते फ़ोटो डालते नजर आते हैं। अपनी गांव से लेकर बड़े शहरों और विदेशों तक जाने की तरक्की बताते हैं। और दूसरा चेहरा ये है उनका या उनके गांव का कुछ भी कह सकते हैं………..
साहब जो गर्मी आपसे सहन नही हो रही आपके लिए जबकि बाहर हजार रास्ते हैं आप कही भी घर के बाहर जाकर खुली हवा में साँस ले सकते हो………….उसके लिए सिर्फ वही एक आँगन और छत है जहाँ वो चैन की साँस ले सकती है………… या…….. फिर ये घूंघट,पर्दा सब परम्पराओं को बन्द कर एक स्वस्थ मानसिकता वाला घर भी वहां बनाया जा सकता है।………….

(क्योंकि ये जो हर एक साँस लेकर अपनी जिंदगी की हर एक साँस कम करने का टैक्स प्रकृति को आप दे रहे हैं……ठीक बराबर से वो भी उतना ही टैक्स भर रही है इसलिए प्रकृति की हर साँस का हर मौसम का उसे भी उतनी ही आजादी से उपयोग करने का हक है, वो कमरे के अंदर घुटन भरी साँस क्यों ले। )

सभी की जिंदगी एक समान कीमती है।

देश के कई गाँवो की स्थिति।