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अपने ही भीतर के अकेलेपन को
अपनी ही चारदीवारी में ताला लगाकर
मैं कैद किए हूँ खुद को, तब से
जब से किसी चिट्ठी की आमद नहीं हुई
जब से कोई कड़क पोस्टकार्ड
मेरे पैरों पर सीधा नहीं टकराया
जब से किसी आसमानी अंतरदेशीय पत्र का स्वाद मेरे मुंह में लटकती जीभ को नहीं मिला
जब से कोई बहन राखी का लिफाफा मेरे पेट में डालकर
आश्वस्त ना हुई
जब से कई बारिशों के बाद जंग की परतें मैं अपने पर ओढ़ता रहा और किसी ने मेरा रंग-रोगन तक नहीं किया
और तब से भी जब से किसी बच्चे ने मेरे साथ शरारत नहीं की
जाने वाली चिठ्ठियों के बीच
मैं कंकड़ पत्थर का इंतज़ार करता रहा
कितनी ही पीढ़ियों की खुशियों और दुख का मैं संदेश वाहक बना
मेरे तन और मन पर लगा जंग का ये ताला शायद ही अब खुले
टूटा मन और जर्जर तन अब शायद ही मुझे ज्यादा दिन ज़िंदा रखे
मेरी मौत के बाद हो सके तो
मेरी अंतिम इच्छा ज़रूर पूरी करना
मेरी तेरहवीं का शोक पत्र व्हाट्सएप से नहीं, डाक से भेजना
-अखिलेश