नदियों के मार्ग में जो भी बाधाएँ आती हैं वो या तो उन्हें तोड़-मरोड़कर, कुचलकर, ध्वस्त कर उसी रास्ते पर आगे बढ़ जाती हैं या ऐसा न कर पाएं तो इस तरह के रास्ते की escape velocity cross कर उस मार्ग की पहुंच से दूर दूसरे रास्ते पर चल निकलती हैं, ये फालतू (पथरीले, अपने घमण्ड में डूबे अपनी ही सत्ता को किसी भी कीमत पर कायम रखने की चाह वाले, कँटीले, ऊंचे-नीचे )टाइप के रास्ते इन नदियों से उलझते ही क्यों हैं।
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और होता क्या है जब इन नदियों का पानी इतने struggle के चलते और बाकी सभी के द्वारा फेंकी हुई गन्दगी के कारण दूषित हो जाता है हम ही उस समय उन्हें बचाने नही जाते न ही उनकी रुकावटों को दूर करने की कोशिश करते, न ही उनमें गन्दगी फेंकने वालो को रोकते हैं बस कहने के लिए खड़े हो जाते हैं कि अब नदियों का पानी काला हो गया, प्रदूषित हो गई, अब नदियों में निर्मलता नही बची,जहरीली हो गई, ये सब, उस समय होश नही था जब वह अपने origine से पूरी तरह से पवित्र साफ निर्मलता लिए हुए हमारे पास तक आने के लिए निकली थी कि इसे ऐसा ही पवित्र बना रहने दें, नही, अब जब उसने सबकी दी हुई गन्दगी अपने मे समेट ली और मलिन हो गई सारे संघर्ष की वजह से, रास्ते बदलने पड़े तो शुरू हो गए हजारों कमियाँ निकालने के लिए।
नदियाँ कभी आत्महत्या नही करतीं जब संघर्ष के चलते इनकी जीवन ऊर्जा स्रोत पानी खत्म हो जाता है तो इसे आत्महत्या नही हत्या कहते हैं, अब हत्यारा कौन? सब समझदार हैं।