हर दो मिनट में एक मौत
एक घंटे में करीब 30 लोगों की मौत
एक दिन में 712 से ज्यादा लोगों की मौतें
एक साल में 2 लाख 60 हजार मौतें
WHO की रिपोर्ट के ये आंकड़े बताते हैं कि शराब की लत हमारे देश में किस तरह भयावह हो गई है। अनजाने में खुद अपने सर ली गई ये बीमारी भारत को किस तरह अंदर से खोखला कर रही है, ये आंकड़े उसे बयां करने के लिए काफी हैं। शराब के नशे के चलते एक साल में एक लाख मौतें, सड़कों पर होने वाली दुर्घटना में हो जाती हैं। शराब की लत के चलते हुए कैंसर से साल भर में करीब 30 हजार लोग मर जाते हैं। 2 लाख 60 हजार मौतों में, सबसे ज्यादा लोग लिवर की बीमारियों के शिकार होकर मरते हैं। 1 लाख चालीस हजार लोग इस तरह की बीमारियों से दम तोड़ जाते हैं।
शराब की लत का शिकार परिवार का एक सदस्य शिकार होता है लेकिन उसके दुष्परिणाम पूरे परिवार को झेलने पड़ते हैं। उस शख्स को तो सामाजिक तिरस्कार और परिवार को सामाजिक बहिष्कार झेलना पड़ता ही है, सबसे बुरा असर घर की महिलाओं और बच्चों पर पड़ता है जो बिल्कुल निर्दोष होते हैं।
AIIMS की नई स्टडी के मुताबिक हमारे देश में करीब 16 करोड़ लोग शराब के नशे के शिकार हैं, जिनमें से 6 करोड़ लोग इसके इस कदर आदी हैं कि वो खुद की सेहत को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं। 72 लाख लोग चरस और गांजा जैसे नशे के शिकार हैं। दिल्ली स्थित AIIMS के National Drug Dependent Treatment Centre (NDDTC) की स्टडी के मुताबिक शराब के नशे के आदी हर एक तीन लोगों में से कम से एक शख्स को तुंरत मेडिकल सहायता की जरूरत है।
अध्ययन में पाया गया कि देश की राजधानी दिल्ली में नशे के आदी अधिकतर बच्चे शराब पीने की कानूनी उम्र से पहले ही नशा करने लगते हैं। राजधानी में करीब साढ़े चार लाख बच्चे अन्य तरह के ड्रग्स के शिकार भी हैं। शराब के नशे के शिकार लोगों में हर 17 पुरुषों पर एक महिला भी है।
पंजाब, गोवा, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़ और अरुणाचल प्रदेश सबसे अधिक शराब के नशे के शिकार हैं। उत्तर प्रदेश में शराब के आदी लोगों की संख्या सबसे अधिक है।
सबसे बड़ी अड़चन
शराब के नशे से मुक्ति में सबसे बड़ी जरूरत परिवार और रिश्तेदारों में जागरूकता और वैज्ञानिक सोच का अभाव है। जो व्यक्ति खुद नशे का शिकार है, वो अपने बारे में सही निर्णय नहीं ले सकता, जरूरत उन लोगों को उसका सही मेडिकल इलाज कराने की है जो उसके इर्द-गिर्द रहते हैं। घर-परिवार के लोग नशे से मुक्ति के लिए टोने-टोटके से लेकर टीवी पर आने वाले सस्ते विज्ञापनों पर तो भरोसा कर लुटते रहते हैं लेकिन जहां वैज्ञानिक तरीके से मेडिकल इलाज की जरूरत होती है, वहां तक वो या तो जाना नहीं चाहते है, या सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते हैं।
नशे के आदी लोगों को मेडिकल सुविधाओं में भारी कमी
भारत जैसे देश में लोग जागरुकता के अभाव में टोने टोटकों और चमत्कारिक दवाओं के चक्कर में अपनी जेब ढीली करते रहते हैं और बीमार शख्स का नशा और गहराता जाता है। ऊपर से हमारे यहां मेडिकल सुविधाओं की भी भारी कमी नजर आती है। नशे के शिकार हर 38 आदमी में से केवल एक आदमी को ही मेडिकल ट्रीटमेंट मिल पाता है। हर एक 180 आदमी में से केवल एक आदमी अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करा पाता है।
क्या करें, क्या ना करें, सही रास्ता क्या है?
सबसे बड़ी जरूरत ये है कि नशे के शिकार शख्स को एक बीमार की तरह ट्रीट करें। उसे ना तो उलाहना दें और ना ही उसका तिरस्कार करें और ना ही ऐसी कोई हरकत करें जिससे वो खुद को उपेक्षित या समाज से बहिष्कृत समझे। ऐसा करने से उसमें खुद के अंदर अधिक हीन भावना आती है और ऐसे में वो और ज्यादा नशे में डूबता जाता है। उसे समझाएं और मेडिकल इलाज के लिए प्रेरित कर उसे मुख्य धारा में जोड़ने की कोशिश करें।
टोने-टोटके और चमत्कारिक दवाओं के चक्कर में ना पड़कर वैज्ञानिक तरीके से मेडिकल इलाज कराएं। फर्जी नशा मुक्ति केंद्रों की भी भरमार है, इसलिए उनकी विश्वसनीयता जांच-परखकर ही कोई फैसला करें। सबसे प्रतिष्ठित AIIMS का National Drug Dependent Treatment Centre (NDDTC) है. एक बार कम से कम उधर के डॉक्टरों से सलाह लें। आप अपने नजदीकी मेडिकल कॉलेज में स्थित नशा मुक्ति विभाग और मनोचिकित्सक से भी सलाह ले सकते हैं।